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________________ ( ५ ) १मिथ्यात्वमें प्रेम रखनेवाला, २ धर्म द्वेषी, ३ बिलकुल मूढ तथा ४ पूर्व व्यग्राहित अर्थात् सद्गुरूका लाभ होनेसे पहिले ही जिसका चित्त किसी मतवादीने एकांतवादमें असत्य समझाकर दृढ़ कर लिया हो वह, ये चार व्यक्ति धर्म ग्रहण करने के योग्य नहीं, इसलिये जो मध्यस्थ याने किसी मत पर पक्षपात न रखनेवाला हो, उसीको धर्म ग्रहण करनेके योग्य समझना चाहिये । १ दृष्टिरागी धर्म ग्रहण नहीं कर सकता, यथा-भुवनभानु केवलीका जीव पूर्व-भव में विश्वसेन नामक राजपुत्र था. वह त्रिदंडीका भक्त था, गुरूने बहुत परिश्रम से उसे प्रतिबोधित किया और अंगीकार किये हुए समकित में दृढ किया, किंतु तो भी पूर्व परिचित त्रिदंडी के वचनसे पुनः इसमें दृष्टिरागका उदय हुआ, जिससे पूर्व प्राप्त समकित को खोकर अनन्तकाल तक संसाश्में भ्रमण करता रहा । २ धर्मका द्वेषी धर्म पानेके योग्य नहीं, यथा-- भद्रबाहुस्वामीका भाई वराहमिहिर धर्म-द्वेषी होने के कारण प्रतिबोध पाकर संसार में भ्रमण करता रहा । ३ मूढ अर्थात् वह जो कि गुरूके वचनों का भावार्थ न समझे । इसके उपर एक किसानके लडकेका लोक प्रसिद्ध दृष्टांत हैं, यथा एक किसानका लडका था, वह इतना जडबुद्धि था कि सामान्य बात भी नहीं समझ सकता था । एक समय उसकी माताने उसे शिक्षा दी कि " हे पुत्र ! राज्यसेवाके निमित्त दरबार में विनय करना चाहिये. " उसने पूछा कि - " विनय
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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