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________________ (२३२) भगवानके सन्मुख धरना । नैवेद्य, आरती आदि आगममें भी कहा है । आवश्यकनियुक्तिमें कहा है कि- 'कीरइ बली' याने "वलि करी जाती है." इत्यादि, निशीथमें भी कहा है किउसके अनन्तर प्रभावती रानीने बलिआदि सर्व करके कहा कि "देवाधिदेव बर्द्धमानस्वामीकी प्रतिमा हो तो प्रकट होओ." ऐसा कहकर (पेटी ऊपर ) कुल्हाडा पटका। जिसमें ( पेटीके ) दो भाग हुए और उसके अन्दर सर्व अलंकारोंस सुशोभित भगवन्तकी प्रतिमा देखने में आई । निशीथपीठिकामें भी कहा है कि- बलि अर्थात् उपद्रव शमनके हेतु कूर ( अन्न ) किया जाता है। निशीथचूर्णिमें भी कहा है कि- संप्रति राजा रथयात्रा करनेसे पहिले विविध प्रकारके फल, मिठाई, शालि, दालि, कोडा, वस्त्र आदि भेंट करे। कल्पमें भी कहा है कि साहम्मिओ न सत्था, तस्स कयं तेण कप्पइ गईणं । जं पुण पडिमाण कए, तस्स कहा का अजीवत्ता? ॥१॥ तीर्थकर भगवान् लिंगसे साधर्मिक नहीं है इससे उनके लिये किया हुआ साधु लेसक्ते हैं तो पीछे अजीव प्रतिमाके लिए जो किया गया है वह लेनेमें क्या हरज है ? इससे जिने. श्वरका बली पका हुआ ही समजना. श्रीपादलिप्तसूरिने प्रतिष्ठाप्राभृतमेसे उद्धृत ऐसी प्रतिष्ठापद्धतिमें कहा है कि- ' आगममें कहा है कि, आरती उतार, मंगलदीप कर,पश्चात् चार स्त्रियोंने मिलकर निम्मंछण गीतगान
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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