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________________ ( २ ) ( आर्यावृत्त) श्रीवीरं सगणधरं, प्रणिपत्य श्रुतं गिरं च सुगुरूंश्च । विवृणोमि स्वोपज्ञं श्राद्धविधिप्रकरणं किंचित् ॥ २॥ गौतमादि गणधर युक्त भगवान श्रीमहावीरस्वामी, श्रुतवाणी (जिनभाषित सिद्धान्त) श्रुतदेवी तथा छत्तीस गुणयुक्त सद्गुरु इन सबको भावपूर्वक वन्दना करके श्राद्धविधि' प्रकरणकी अल्पमात्र व्याख्या करता हूँ || २ || युगवरतपागणाधिपपूज्यश्री सोमसुन्दर गुरूणाम् | वचनादधिगततन्त्रः सत्त्वहितार्थ प्रवर्तेऽहम् ॥ ३ ॥ युग प्रधान, तपागच्छाचार्य तथा पूज्य श्री सोमसुन्दर गुरूमहाराज के वचन से केवली भाषित तत्रसे विज्ञ, मैं उनके वचन ही से भव्यजीवोंके हित के व्याख्याका आरम्भ लिये करता हूँ || ३ || ( मूल गाथा ) सिरिवीरजिणं पणमिअ सुआउ साहेमि किमवि सड्ढविहिं रायगिहे जगगुरुणा, जह भणिअं अभयपुट्ठेणं ॥ १ ॥ भावार्थ:-- केवलज्ञान, अशोकवृक्षादि आठ प्रातिहार्य, वाणीके पैंतीस गुण इत्यादि ऐश्वर्य से सुशोभित श्रीवीरजिनेश्वरको मन, वचन, कायासे भावपूर्ण वन्दना करके, राजगृही नगरी में अभयकुमारके पूछने पर श्रीवीर जिन भगवानने जिस प्रकार उपदेश किया था उसी प्रकार सिद्धान्त वचन तथा गुरु सम्प्र
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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