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|| नमः श्रीसर्वज्ञाय ॥
श्रीमत्तपोगणाधीशरत्न शेखराचार्यकृत श्राद्धविधि.
मंगलाचरण.
( शार्दूलविक्रीडितछंद )
अर्हत्सिद्धगणीन्द्रवाचकमुनिप्रष्ठाः प्रतिष्ठास्पदं, पञ्च श्रीपरमेष्ठिनः प्रददतां प्रोच्चै गरिष्ठात्मताम् । द्वेधा पञ्च सुपर्वणां शिखरिण: प्रोदाममाहात्म्यत--- श्वेतश्चिन्तितदानतश्च कृतिनां ये स्मारयन्त्यन्वहम् ॥ १ ॥
जो पंडितों को अपनी लोकोत्तर प्रतिष्ठा से देवताओंके पांच मेरुका और मनोवांछित वस्तुके दानसे पांच कल्पवृक्षोंका निरन्तर स्मरण कराते हैं ऐसे यशके भण्डार श्रीअरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा मुनिवर्य ये पंच परमेष्ठी आराधक भव्य प्राणियों को पूर्ण प्रतिष्ठाका स्थान ( मोक्ष ) दो ॥ १ ॥