SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८१ ) दिकका चुम्बन भी ग्राह्य है. चौविहारादि पच्चखान तो कवलआहार ही का है. लोमादिक आहारका नहीं. ऐसा न हो तो शरीर में तैल लगाने से तथा फोडे, फुंसी ऊपर पुल्टिस बांधने से भी अनुक्रम से आंबिल तथा उपवासका भंग होनेका प्रसंग आवे, ऐसा माननेका व्यवहार भी नहीं है । कदाचित कोई ऐसा माने तो, लोमाहार निरन्तर चलनेका संभव होनेसे पच्चखान के अभावका प्रसंग आजाता है । अनाहार वस्तु. - अनाहार वस्तुएं व्यवहारमें ली गई है, वे इस प्रकार :नीम पंचांग (जड, छाल, पत्र, फूल, फल), मूत्र, गिलोय, कुटकी, चिरायता, अतिविष, कूडा, चित्रक, चंदन, रक्षा (राख) हलदी, रोहिणी, उपलेट, वच, त्रिफला, बबूलकी छाल, धमासा, नाय, असगंध, रिंगणी, एलुवा, गुग्गुल, हरडेदल, वउणी, बोर, छालमूल, कथेरीमूल, केरडामूल, पंवाड, बोडथेरी, चीड, आठी, मजीठ, बोल, बीउ, घीकुंवार, कुंदरू, इत्यादिक अनिष्ट स्वादकी वस्तु रोगादि संकट होवे तो चौविहारमें भी ग्राह्य है । एकांगिक आहारादि. श्री कल्प में तथा उसकी वृत्ति में चौथे खंडमें शिष्य पूछता है कि, आहार और अनाहार वस्तुका लक्षण क्या है ? आचार्य कहते हैं-- ओदन (भात) आदि शुद्ध अकेला ही क्षुधाका शमन करे, उसे आहार कहते हैं । वह अशन, पान, खादिम तथा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy