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________________ (१८०) आदिकी छाल, नागरबेलके पान, सुपारी, हिंग्यष्टक, हिंगुतेवीसा, पंचकोल, पुष्करमूल, जवासा, बावची, तुलसी, कपूरीकंद इत्यादिक स्वादिम हैं (४) भाष्य और प्रवचनसारोद्धार इन दो ग्रंथोंके अभिप्रायसे जीरा स्वाद्य है, और कल्पवृत्तिके अभिप्रायसे खाद्य है। अजमान भी खाद्य है, ऐसा बहुतसे कहते हैं । सर्व खाद्य वस्तु और इलायची कपूर इत्यादिकका जल दुविहार पच्चखाणमें ग्राह्य है । बेसन, सौंफ, सुवा, कोठवडी, आमला, आंबागोली, कोठपत्र, नीम्बूपत्र, इत्यादि खाद्य होनेसे दुविहार पच्चखानमें अग्राह्य है । तिविहारमें तो केवल जल ग्राह्य है । फूंकाजल तथा सीकरी, कपूर, इलायची कत्था, खादिर चूर्ण. कसेरू, पाटल, इत्यादिकका जल निथरा हुआ अथवा छाना हुआ होवे तभी ग्राह्य है, अन्यथा नहीं । शास्त्रमें शहद, गुड, शक्कर, मिश्री, आदि खाद्यमें और द्राक्ष, मिश्री इत्यादिकका जल तथा छांछ आदि पानमें कहा है. परन्तु ये दुविहार आदिमें ग्राह्य नहीं हैं । नागपुरीयगच्छके पच्चखानभाष्यमें कहा है कि, जो भी शास्त्र में द्राक्षपानकादिक पानमें और गुडआदि स्वादिममें कहा है, तो भी वे तृप्तिकारक होनेसे तिविहारादिकमें अनाचरित हैं, इसीलिये पूर्वाचार्योंने नहीं लिया। स्त्रीसंभोग करनेसे चौविहारका भंग नहीं होता, परन्तु बालादिकके ओष्ठ, गाल इत्यादिका चुम्बन करनेसे भंग होजाता है। दुविहारमें तो स्त्रीसंभोग तथा बाला
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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