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(१७२) भी पत्र, फल इत्यादिकमें असंख्याता जीवकी विराधना होती है । जल लवण इत्यादि वस्तु असंख्यात जीवरूप है। पूर्वाचार्थोंका ऐसा वचन है कि, तीर्थंकरोंने एक जलबिन्दुमें जो जीव कहे हैं, वे जीव सरसोंके बराबर होजावें तो जंबूद्वीपमें न समावें । हरे आमलेके समान पृथ्वीकायपिंडमें जो जीव होते हैं बे कबूतरके बराबर होजावें तो जंबूद्वीपमें न समावें । सर्व सचित्तका त्याग करनेके ऊपर अंबडपरिबाजकके सातसौ शिष्योंका दृष्टान्त है। ___ श्रावक धर्म अंगीकार कर अचित्त तथा किसीके न दिये हुए अन्न जलका भोग नहीं करने वाले वे (अंबडके शिष्य) एक समय एक बनमेंसे दूसरे बनमें फिरते ग्रीष्मऋतुमें अत्यन्त तृषातुर हो गंगानदीके किनारे आये। वहां "गंगानदीका जल सचित्त तथा अदत्त (किसीका न दिया हुआ) होनेसे, चाहे जो हो हम नहीं ग्रहण करेंगे" ऐसे दृढनिश्वयसे अनशन कर वे सबही पांचवें ब्रह्मदेवलोकमें इन्द्र समान देवता हुए । इस प्रकार सचित्त बस्तुके त्यागमें यत्न रखना चाहिये।
___ सचित्तादि १४ का नियम. जिसने पूर्व में चौदह नियम लिये हों, उन्होंने उन नियमोंमें प्रतिदिन संक्षेप करना. और अन्य भी नये नियम यथाशक्ति ग्रहण करना । चौदह नियम इस प्रकार हैं:- १ सचित्त २ द्रव्य, ३ विगय, ४ उपानह ( जूते ), ५ तांबूल (खाने का