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________________ ( १७० ) इस भांति सचित्त अचित्त वस्तुका स्वरूप जान कर सचि तादिक सर्व भोग्य वस्तु नाम ले निश्चय कर, तथा अन्य भी सर्व बात ध्यान में रख सातवां व्रत जैसे आनन्द कामदेव आदिअंगीकार किया वैसे ही श्रावकने अंगीकार करना चाहिये । इस प्रकार सांतवां व्रत लेनेकी शक्ति न होय तो साधारणतः एक, दो इत्यादि सचित्त वस्तु, दस बारह आदि द्रव्य, एक दो इत्यादि विग आदिका नियम सदैव करना, परन्तु प्रतिदिन नाम न लेते साधारणतः अभिग्रहमें एक सचित्त वस्तु रखे और नित्य पृथक् पृथक् एक सचित्त वस्तु ले तो फेरफार से एक एक वस्तु लेते सर्व सचित्त वस्तुका भी ग्रहण हो जाता है, ऐसा करने से विशेष विरति नहीं होती, इसलिये नाम देकर सचित्तवस्तुका नियम किया हो तो नियममें रखी हुई से अन्य सर्व सचित्तवस्तुसे यावज्जीव विरति होती हैं, यह अधिक फल स्पष्ट दीखता है । कहा है कि " पुप्फफलाणं च रसं, सुराइ मंसाण महिलिआणं च । जाणता जे विरया, ते दुक्करकारए वंदे || १ ||" पुष्प, फल, मद्यादिक, मांस और स्त्रीका, रस जानते हुए भी जो उससे विरति पाये, उन दुष्करकारक भव्यजीवोंको वन्दना करता हूं | सब सचित्त वस्तुओं में नागरबेलके पान छोडना बहुत कठिन है, कारण कि बाकी सर्व सचित्त वस्तु उसमें भी विशेष
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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