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________________ (१६८) गर्म पानी त्रिदंड ( तीन उकाले आया हुआ ) उकाला हुआ होवे तो अचित्त होनेसे साधुको ग्राह्य है, परंतु ग्लानादिकके निमित्त तीन प्रहर उपरान्त भी रखना । अचित्त जल ग्रीष्मऋतु पांच प्रहर उपरांत, शीतऋतुमें चार प्रहर उपरांत और वर्षाऋतुमें तीन प्रहर उपरांत सचित्त होता है । ग्रीष्मऋतुमें काल अत्यन्त शुष्क होनेसे जलमें जीवकी उत्पत्ति होनेमें बहुत समय ( पांच प्रहर) लगता है । शीतऋतुमें काल स्निग्ध होनेसे ग्रीष्मकी अपेक्षा थोडा समय ( चार प्रहर ) लगता है, और वर्षाऋतुमें काल अतिशय स्निग्ध होनेसे शीतऋतुकी अपेक्षा भी थोडा समय ( तीन प्रहर ) लगता है । जो उपरोक्त कालसे अधिक रखना होवे तो, उसमें राख डालना, जिससे पुनः सचित्त न हो । ऐसा १३६ वें द्वारमें कहा है । जो अप्कायादिक ( जलआदि ) अग्नि आदिक बाह्य शस्त्रका सम्बन्ध हुए बिना स्वभाव ही से अचित्त होगया हो, उसे केवली, मन:पर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी तथा श्रुतज्ञानी अचित्त है, ऐसा मानते हैं तो भी मर्यादा भंगके प्रसंगसे उसका सेवन नहीं करते । सुनते हैं कि काई तथा त्रस जीवसे रहित और स्वभावसे अचित्त हुए पानीसे भरा हुआ भारी द्रह पास होने पर भी भगवान श्रीवर्द्धमान स्वामीने अनवस्था-दोष टालनेके निमित्त और श्रुतज्ञान प्रमाणभूत है ऐसा दिखानेके लिये तृषासे अत्यन्त पीडित तथा उसीसे प्राणांत संकटमें पडे हुए अपने शिष्योंको
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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