SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५१) अभ्याससे साध्य होती है, अभ्यास ही से सर्व क्रियाओंमें निपुणता उत्पन्न होती है । लिखना, पढना, गिनना, गाना, नाचना इत्यादि सर्व कलाकौशलमें यह बात मनुष्योंको अनुभव सिद्ध है । अभ्याससे सर्व क्रियाएं सिद्ध होती हैं, अभ्यासहीसे सर्व कलाएं आती हैं और अभ्यासहीसे ध्यान, मौन, इत्यादि गुणों की प्राप्ति होती है । अतएव ऐसी कौनसी बात है. जो अभ्याससे न हो सके ? जो निरन्तर विरतिके परिणाम रखनेका अभ्यास करे, तो परभवमें भी उस परिणामकी अनुवृत्ति होती है । कहा है कि-- भाविना भविना येन, स्वल्पापि विरतिः कृता । स्पृहयंति सुरास्तस्मै, स्वयं तां कर्तुमक्षमाः॥१॥ अभ्यासेन क्रियाः सर्वाः, अभ्यासात्लकलाः कलाः। अभ्यासाद् ध्यानमौनादि, किमभ्यासस्य दुष्करम् ? ॥२॥ जीव इसभव में जिस किसी गुण अथवा दोषका अभ्यास करता है उस अभ्यासके योगहीसे वह वस्तु परभवमें पाता है । इसलिये जैसी इच्छा हो उसके अनुसार भी विवेकी पुरुषने बारह व्रत सम्बन्धी नियम ग्रहण करना चाहिये. - इस स्थानपर श्रावक तथा श्राविकाओंने अपनी इच्छासे कितना प्रमाण रखना, इसकी सविस्तार व्याख्या करना आवश्यक है । जिससे कि अच्छी भांति समझकर परिमाण रखकर नियम स्वीकार करे तो उसका भंग न हो । विचार करके उतना ही नियम लेना चाहिये जितना कि पल सके। सर्वनियमोंमें
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy