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(१४७) करना । काउस्सग्ग करनेके अनन्तर और रात्रिप्रतिक्रमणका समय हो तब तक अति निद्रा आदि प्रमाद होवे तो पुनः का उस्सग्ग करना । किसी समय दिनमें निद्रा लेते कुस्वप्न आवे तो भी इसी प्रकारसे काउस्सग्ग करना ऐसा ज्ञात होता है। परन्तु वह उसी समय करना ? कि संध्या समय प्रतिक्रमणके अवसर पर करना ? यह बहुश्रुत जाने ।
विवेकविलासादिग्रंथमें तो यह कहा है कि, उत्तम स्वप्न देखा हो तो पुनः सोना नहीं, और सूर्योदय होने पर वह स्वप्न गुरुको कहना । दुःस्वप्न देखने में आवे तो इससे प्रतिकूल करना, अर्थात् देखते ही पुनः सो जाना, और किसीके सन्मुख कहना भी नहीं । जिसके शरीरमें कफ, वात, पित्तका प्रकोप अथवा किसी जातिका रोग न होवे तथा जो शान्त, धार्मिक और जितेन्द्रिय हो उसी पुरुषके शुभ अथवा अशुभ स्वप्न सच्चे होते हैं । १ अनुभव की हुई बातसे २ सुनी हुई बातसे, ३ देखी हुई बातसे, ४ प्रकृतिके अजीर्णादि विकारसे, ५ स्वभावसे ६ निरन्तर चिन्तासे, ७ देवतादिकके उपदेशसे, ८ धर्मकार्यके प्रभावसे तथा ९ अतिशय पापसे, ऐसे नौकारणोंसे मनुष्यको नौप्रकारके स्वम आते हैं। पहिले छः कारणसे दिखे हुए शुभ अथवा अशुभ स्वप्न निष्फल होते हैं,
और अन्तके तीन कारणोंसे दिखे हुए शुभ अथवा अशुभ स्वप्न अपना फल देनेवाले होते हैं । रात्रि के पहले, दूसरे, तीसरे और