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________________ (१३४) सूर्यनाडी चलती होवे तो अस्तके समय चन्द्रनाडी शुभ है । किसी २ के मतमें वारके क्रमसे सूर्यचन्द्रनाडीके उदयके अनुसार फल कहा है, यथाः-रवि, मंगल, गुरु और शनि इन चार वारों में प्रातःकाल में सूर्यनाडी तथा सोम, बुध और शुक्र इन तीन वारोंमें प्रातःकालमें चन्द्रनाडी होवे वह शुभ है । किसी २ के मतमें संक्रांतिक्रमसे सूर्यचन्द्रनाडीका उदय कहा है, यथाः-मेषसंक्रान्तिमें प्रातःकालमें सूर्यनाडी और वृषभसंक्रांतिमें चन्द्रनाडी शुभ है इत्यादि । किसी २ के मतमें चन्द्रराशिके परावर्तनके क्रमसे नाडीका विचार है, कहा है कि-- सूर्योदयसे लेकर प्रत्येक नाडी अढाई घडी निरन्तर चलती है। रहेंटके घडेकी भांति नाडियां भी अनुक्रमसे फिरती रहती हैं । छत्तीस गुरुवर्ण ( अक्षर ) का उच्चारण करने में जितना समय लगता है उतना समय प्राणवायुको एक नाडीमेंसे दूसरी नाडीमें जाते लगता है । इस प्रकार पंच तत्वोंको स्वरूप जानो। अग्नितच ऊंचा, जलतत्त्व नीचा, वायुतत्व आडा, पृथ्वीतत्व नासिकापुटके अन्दर और आकाशतत्त्व चारों तरफ रहता है चलती हुई सूर्य और चन्द्रनाडीमें क्रमशः वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी तथा आकाश ये पांच तत्त्व बहते हैं, यह नित्यका अनुक्रम है । पृथ्वीतत्त्व पचास, जलतत्व चालीस, अग्नितत्त्व तीस, वायुतत्व बीस और आकाशतत्त्व दस पल बहता है । सौम्य ( उत्तम ) कार्यमें पृथ्वी व जलतत्वसे फलकी उन्नति
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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