SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२६) समाधान:- व्यवहारनयके मतसे ये भावश्रावक ही हैं , क्योंकि वैसा ही व्यवहार है। निश्चयनयके मतसे सपनीसमान और खरंटक समान ये दो प्रायः मिथ्यादृष्टि समान द्रव्यश्रावक और शेष सब भावश्रावक हैं। कहा है कि " चिंतइ जइकज्जाई, न दिदुखलिओवि होइ निन्नेहो । एगंतवच्छलो जइजणस्स जणणीसमो सड्ढो ।। १॥ हिअए ससिणेहो चिअ, मुणीण मंदायरो विणयकम्मे । भायसमो साहूणं, पराभवे होइ सुसहाओ ।।२।। मित्तसमाणो माणा ईसिं रूसइ अपुच्छिओ कज्जे । मन्नतो अप्पाणं, मुणीण सयणाउ अब्भहिरं ॥ ३ ॥ थद्धा छिहरेही, पमायखलिआणि निच्चमुच्चरइ । सडो सवत्तिकप्यो साहूजणं तणसमं गणः ॥४॥" द्वितीयचतुष्के--" गुरुभणिओ सुत्तत्थो, बिंबिज्जइ अवितहो मणे जस्स । सो आयंससमाणो, सुसावओ वनिओ समए ॥१॥ पवणेण पडागा इव, भामिज्जइ जो जण मूढेण । अविणिच्छियगुरुवयणो, सो होइ पडाइआतुल्ला ॥ २ ॥ पडिवन्नमसग्गाहं, न मुअइ गीअत्थसमणुसिट्ठोवि । थाणुसमाणो :एसो, अपओसी मुणिजणे नवरं ॥ ३ ॥ उम्मग्गदेसओ निन्ह वोसि मूढोसि मंदधम्मोसि । इअ संमंपि कहतं खरंटए सो खरंटसमो ॥ ४ ॥
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy