SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०६) ही आतुर हुआ। उसने यशोमतीके बचनका तिरस्कार किया। सच्चे मातापिताकी परीक्षा करने तथा उनको देखनेके लिये वहांसे निकला । वह आज तुझे आकर मिला । यशोमती बगुलेकी भांति पति तथा पुत्रसे भ्रष्ट हो गई । जिसमे उसे वैराग्य हुआ, दीक्षा लेनेका विचार किया, परन्तु जैन साध्वीका योग न मिलनेसे वह योगिनी हो गई, मैं वही यशोमती हूं । भवकी उत्तम भावनाओंका मनन करनेसे मुझे शीघ्र कितना ही ज्ञान प्राप्त हुआ, इससे मैं यह सब बात जानती हूं । उमी चतुर यक्षने आकाशवाणीके रूपमें मुझसे सर्व वर्णन कहा था सो यथावत् मैने तुझे कह सुनाया " यह अयुक्त बात सुनकर राजाको बहुत क्रोध उत्पन्न हुआ, साथही मनमें बहुत ही खेद हुआ, अपने घरका ऐसा हाल सुनकर कौन दुखी न हो? पश्चात् सत्यवादिनी योगिनीने राजाको प्रतिबोध करनेके हेतु योगिनीकी भाषाकी गीतके अनुसार मधुरवचनसे कहा-- कवण केरा पुत्त मित्ता, कवण केरी नारी । मुहिआ मोहिओ मेरी मेरी, मूढ भणइ अविचारी ॥१॥ जोगिन जोगी हो हो, जोइन जोग विचारा । मेल्हि अमारग आदरि मारग, जिम पामो भव पारा ॥२॥जा० अतिहि गहना अतिहि कूडा, अतिहि अथिर संसारा । भामु छाँडी योगजु मांडी, कीजे जिनधर्म सारा ॥३॥ मोहे मुहिओ कोहे खोहिओ, लोहे वहिओ धाई ।
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy