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________________ (१०१) हुआ और मनमें आर्त रौद्रध्यान करके मृत्युको प्राप्त हुआ। उसी दूतका जीव भद्दिलपुरके जंगल में एक भयानक सर्प हुआ। एक समय उसी सर्पने वनमें भ्रमण करते हुए सिंहमंत्रीको काटा जिससे वह मरगया, सर्प भी मर कर नर्कमें गया । तथा नर्कसे निकल कर तूं वीरांग राजाका पुत्र हुआ है । मंत्रीका जीव विमलाचल पर्वत पर जलकी बावडीमें हंसका बच्चा हुआ, उसे विमलाचलके दर्शनसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसने पूर्व भवमें मैंने सम्यक् रीतिसे जिनभगवानकी आराधना नहीं की इससे मुझे तिर्यंच योनि मिली है, यह विचार कर कि चोंचमें फूल ला २ कर जिन महाराजकी पूजा करना शुरू की, दोनों पंखोंमें जल भर कर उसने भगवानको स्नान कराया इत्यादि आराधनासे वह मृत्युको पा सौधर्म-देवलोकमें देवता हुआ तथा वहांसे च्यव कर इस समय राजा मृगध्वजके यहां हंसराज नामका पुत्र हुआ है। श्रीदत्त मुनिके मुखसे यह वृत्तान्त सुन कर मुझे जातिस्मरण की भांति पूर्वभवके संपूर्ण बैरका स्मरण हुआ और अहंकारसे "हंसराजको अभी मार डालू" ऐसी कल्पना करता हुआ यहां आया. आते समय मेरे पिताने मुझे बहुत मना किया परन्तु मैंने नहीं माना । यहां आने पर हंसराजने मुझे युद्ध में जीता । देवयोगसे प्राप्त इसी वैराग्यसे मैं श्रीदत्त मुनिके पास जा दीक्षा लूंगा " दुष्कर्मरूप अंधकारको नाश करनेके लिये सूर्यके समान शूरने इतना कह अपने स्थान पर आकर शीघ्र ही दीक्षा ग्रहण
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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