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________________ (१००) बहुत ही कठिन है । आधा मार्ग चलनेके बाद मंत्रीको स्मरण आया कि "अपनी एक श्रेष्ठ वस्तु वहां रह गई है, तब मंत्रीने एक दूतसे कहा कि, " तू शीघ्र विमलपुर जा और अमुक वस्तु ले आ. " दूतने उत्तर दिया कि, "शून्य नगर में मैं अकेला कैसे जाऊं ?” इस पर मंत्रीने रोषमें आकर जबरदस्ती से उसे भेजा । उस दूतने विमलपुर में आकर भी किसी भिल्लके इष्ट वस्तुको लेकर चले जाने के कारण कुछ न पाया। जब वह खाली हाथ लौटकर आया तो मंत्रीने और भी क्रोधित हो कर उसे खूब मारा तथा मूर्च्छितावस्था में ही मार्गमे छोड आगेको प्रस्थान किया । लोभसे मनुष्यको कितनी मूर्खता प्राप्त होती है? धिक्कार है ऐसे लोभको । क्रमशः मंत्री सपरिवार भद्दिलपुरमें पहुंचा । इधर शीतल पवनके लगनेसे उस दूत को भी चैतन्यता हुई | स्वार्थरत सब साथियों को गये जान कर वह मनमे विचार करने लगा कि । प्रभुताके अहंकार से उन्मत्त इस अधम मंत्रीको धिक्कार है ! कहा है कि- " चौ--चिल्लाकाई गंधिअ भट्टा य विज्जपाहुण्या | बेसा धूअ नरिंदा परम्स पीडं न याति || १ | ७२३॥ चौर, बालक किरानेकी दूकानवाला ( अत्तार ), रणयोद्धा, वैद्य, पाहुना, वेश्या, कन्या तथा राजा ये नौ व्यक्ति परदुःखको नहीं समझती हैं। इस भांति व्याकुल होकर मार्ग न जानने से वह वनमें भटकते २ क्षुधा तथा तृषासे बहुत पीडित
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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