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________________ ( ९५ ) गई, वहां तुझे न देखा तो अवधिज्ञानसे ज्ञात करके मैं यहां आई हूं । हे चतुर ! शीघ्र तेरी आतुर माताको अपने दर्शन देकर शान्तवना दे । जैसे सेवक अपने स्वामीकी इच्छा के अनुसार बर्ताव करते हैं उसी प्रकार विशेष कर सुपुत्र अपनी माताकी, सुशिष्य अपने गुरुकी, तथा श्रेष्ठ कुलवधू अपनी सासकी इच्छानुसार बर्ताव करते हैं । मातापिता अपने सुख ही के लिये पुत्रकी इच्छा करते हैं । जो पुत्र दुःखके कारण हो तो ऐसा समझना चाहिये कि मानों जलमें अग्नि लगी । मातापिता में भी माता विशेष पूजनीय है । कारण कि पिताकी अपेक्षा पुत्रके लिए माता ही अधिक कष्ट सहती है । ऊढो गर्भः प्रसवसमये सोढमप्युपशूलं, पथ्याहारैः स्नपनविधिभिः स्तन्यपानप्रयत्नैः | विष्ठामूत्रप्रभृतिमलिनैः कष्टमासाद्य सद्यः, त्रातः पुत्रः कथमपि यया स्तूयतां सैव माता ॥ १ ॥ ६७८ ॥ जिसने गर्भ धारण किया प्रसूतिके समय अतिविषम वेदना सहन की तथा बाल्यावस्था में स्नान कराना दूधपानका यत्न रखना, मल-मूत्रादिक साफ करना, योग्य भोजन खिलाना आदि बहुत प्रयास से जिसने रक्षण किया वह माताही प्रशंसनीय है।" यह सुन शोकसे सजल नेत्र होकर शुकराज कहने लगा कि "हे देवि ! समीप आये हुए तीर्थको वन्दना किये बिना किस प्रकार आऊं ?
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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