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________________ (९० ) दूधमें घी व शक्करकी भांति मंत्रियोंकी अनुकूल सम्मति सुनकर शुकराज जानेके लिये बहुत उत्सुक हुआ तथा नेत्रों में अश्रु धारण किये हुए मातापिताके चरणों में प्रणाम कर गांगलिऋषिके साथ चला और अर्जुन के समान वह धनुर्धारी वीर क्षणमात्रमें सुयोग्य तीर्थ पर आया तथा सुसज्जित होकर वहां रहने लगा। उसके प्रभावसे उस पर्वत पर फल फूलोंकी खूब उत्पत्ति हुई, हिंसक पशु तथा वनमें अग्नि इत्यादिका किंचित्. मात्र भी उपद्रव नहीं हुआ । पूर्वभवमें आराधन किये हुए धर्मकी महिमा इतनी अद्भुत है कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता. कारण कि शुक्रराजके समान साधारण मनुष्यकी भी योग्यता एक महान तीर्थके समान हो गई । तपस्वीजनोंके सांनिध्यसे सुखपूर्वक वहां रहते हुए एक दिन रात्रिके समय शुकराजने किसी स्त्रीके रोनेका शब्द सुना । उसने उस स्त्रीक पास जाकर मधुर-शब्दोंसे उसके दुःखका कारण पूछा। उस स्त्रीने कहा कि “शत्रुके समुदायसे भी कम्पित न होनेवाली चंपापुरी नगरी में शत्रुओंका मर्दन करनेवाला शत्रुमर्दन नामक राजा है । उस राजाके साक्षात् पद्मावतीके समान गुणवान पद्मावती नामक एक कन्या है, मैं उसकी धायमाता हूं । एक समय मैं उसे गोदमें लिये बैठी थी कि इतनेमें जैसे सिंह गाय सहित बछडेको उठा ले जावे उस भांति कोई पापी इधर मुझ सहित उस कन्याको उठा लाया तथा मुझे यहां डाल कौएकी भांति वह
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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