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________________ योग-प्रयोग-अयोग/२१ भावमन प्रत्येक जीवात्मा में होता है। एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों तक फैला हुआ है। वनस्पति में संवेदना विस्तृत रूप में पायी जाती है उसका कारण भी यही भाव मन है। वैज्ञानिकों के अनुसार मन का आवेग एक सेकण्ड में २२,६५,१२० मील का है। अतः एक सेकण्ड में अनेक कामनाएँ उठती हैं । वे कामनाएँ कार्य रूप में बदलने की क्षमता रखती है। वही संकल्प है। जो संकल्प-विकल्प अस्थिर होते हैं, वे आते हैं और विलीन हो जाते हैं । उससे कोई लाभ या हानि नहीं होती । लाभ और हानि स्थिर संकल्प से होती हैं । इस प्रकार दोनों मन संकल्प विकल्प के जाल में उलझे रहते हैं। प्राप्ति क्रम का निरीक्षण १. संकल्प विकल्प-योग है, - स्थिरीकरण का उपाय प्रयोग है, और मन का निग्रह (अमन)-अयोग है। २. मानसिक तनाव योग है, तनाव से मुक्त होने का उपाय उपयोग रूप प्रयोग है, सर्वथा तनावमुक्त उपयोग रूप प्रयोग अयोग है। ३. चंचल मन योग है, स्थिर मन प्रयोग है, और अमन अयोग है। परिवर्तन की प्रक्रिया-वचनयोग का प्रयोग वाणी का प्रभाव हमारे ज्ञान, विचार, स्मृति, कल्पना, विकार और प्रवृत्तियों पर पड़ता है ठीक उसी प्रकार हमारे स्थूल शरीर, प्राण और इन्द्रियों पर भी पड़ता है। यह प्रभाव सुनना और बोलना रूप वाणी के उभयांत्मक परिवर्तन से परिलक्षित होता है। ____ जो वाणी बोली जाती है वह वायुमंडल में कंपनों के प्रविष्ट होने से अनेक प्रकार के शब्द संवेदन के रूप में उत्पन्न होती है। इन शब्दों को श्रवणेन्द्रिय कम से कम १२ कंपन प्रति सैकण्ड और अधिक से अधिक ६० सहस प्रति सेकंड वायु कंपन ग्रहण कर सकती है अतः हमारी वाणी आगमिक रूप से चौदह राजुलोक घूमकर दूसरों की श्रवणेन्द्रि में टकराती है और वह वाणी श्रवण द्वारा अनेकों को प्रभावित करती है। उन शब्दों की अनेक शक्तिधारा को टेलिपेथी के रूप में या यांत्रिक रेडियो, टेलीफोन, टी. वी., वी. सी. आर. इत्यादि के माध्यम से वैज्ञानिकों ने तरंगित किया है।
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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