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________________ योग-प्रयोग-अयोग/ २४९ निकलने वाले पित्तरस से मिलकर भोजन का परिपाक करता है तथा सर्करा को संतुलित रखता है। इस Etheric body से भी अतिसूक्ष्म Astrol body है जो सम्पूर्ण शरीर को रस प्रदान करता है। मणिपुर चक में एकाग्र ध्यानस्थ साधक संपूर्ण देह की धड़कन सुन सकता है,दिव्यनाद सुन सकता है और सूक्ष्म तैजस शरीर से सावित विद्युत तरंगों का आनंद लूट सकता है। ४. अनाहत चक्र-यह चक्र हृदय के भीतर होता है। यह चक्र वायु तत्त्व प्रधान है। इसका रंग गुलाबी है किन्तु साधना काल में इस चक्र के माध्यम से रंगबिरंगे अद्भुत आकार दृश्यमान होते हैं ; प्राण, प्रकृति, अहंकार, चित्त आदि सूक्ष्मातिसूक्ष्म तत्त्वों के दर्शन भी होते हैं। आकृति नं. १५ सहससार समाधियोग की प्राप्ति होती है आशामा तृतीय नेत्र विवेकज्ञान की प्राप्ति होती है, प्रेविकनाड़ी कंद (Cervical gangllion)) विद्धि चक्रप्राण इन्द्रिय और श्वसन ARSA जय की प्राप्ति होती है। प्राणनाड़ी (Vagus nerve) RELA SAARTARIA हृदय प्रस्तान (Cardiac plexus) अनाहत . वाक नियन्त्रण सकल्पबल भावतन्त्र जागृत होता है। विद्युत शक्ति चन्द्र-ऊजो जागृत होती है। सूर्य-तैजस सौर प्रस्तान (Solar plexus) शारीरिक, मानसिक तनाव मुक्ति की प्राप्ति होती है। वस्ति प्रस्तान (Pelvic plexus) समियान चक्र वृत्ति संक्षय, ब्रह्मचर्य जय की प्राप्ति होती है। कुंडलिनी जागृत होती है। __... - एक . पिंगला
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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