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________________ २४८ / योग-प्रयोग अयोग ये ग्रंथियाँ योगियों की भाषा में चक्र के रूप में हजारों वर्ष पुरानी हैं.। जिस प्रकार ग्रंथियों का सम्बन्ध एक- एक-दूसरे से है वैसे ही चक्रों का सम्बन्ध भी सभी से है। अंतर इतना ही है कि ग्रंथि वृत्ति है और चक्र प्रकृति है। सहस्त्र चक्र से मूलाधार और मूलाधार से सहस्रसार के बीच में रहे हुए चक्र सुषुम्ना नाड़ी से जुड़े हैं । ग्रन्थियों के माध्यम से वृत्तियाँ भोगी जाती हैं और चक्रों के माध्यम से वृत्तियों का क्षय किया जाता है । योगियों ने अपनी ध्यान-दृष्टि से यह देखा है कि प्रत्येक चक्र का मूल, जड़-बुनियाद तथा शक्ति का केन्द्र सुषुम्ना नाड़ी है। १. मूलाधार चक्र-शरीर में मेरुदण्ड के अंतिम भाग पुच्छास्थि के समीप है। इस चक्र में रजोगुण के प्रभाव से पीला और सात्त्विक गुण के प्रभाव से श्वेत रंग होता है अन्यथा इसमें लाली हमेशां झलकती रहती है। यह चक्र पृथ्वी तत्त्व प्रधान और दीपशिखावत नीली, लाल, पीली ज्योत् के रूप में स्पष्ट होता है। सुषुम्ना यहाँ खुलती है और कुंडलिनी का प्रवेश द्वार है। २. स्वाधिष्ठान चक्र-यह चक्र मूलाधार से चार अंगुल ऊपर गर्भाशय के मध्य में जो शुक्रकोश नामक ग्रंथि (Seminal Vesicle) होती है उसमें प्रतीत होती है। इसी स्थान पर Adrenal Gland भी होती है। इस ग्रंथि से अनेक प्रकार के स्रावों का उत्पादन होता है, तथा मस्तिष्क और प्रजनन अवयव स्वस्थ, विकसित तथा सशक्त होते हैं । एड्रिनल ग्लैण्ड जब वृत्तियों से जुड़ी है तब गोनाड्स (कामग्रन्थि) का द्वार खुला होता है, कामुकता, वासना, विषय-कषाय में अनुरक्तता विशेष होती है और जब यह ग्रंथि प्रकृति से जुड़ती है तब निर्मलता, पवित्रता, क्षमता आदि गुण प्राप्त हो जाते हैं। इस चक्र का रंग नारंगी जैसा है और तत्त्व जल है। यह चक्र सूर्य की किरणों तथा अल्ट्रा-वायलेट का किरणों से ऑक्सीजन अर्थात् विशुद्ध प्राण-वायु ग्रहण करता है। यह तत्त्व जब शरीर से बाहर आता है उसे ओरा (Auro) कहते हैं ! इस चक्र पर संयम करने से ब्रह्मचर्य में सहायता मिलती है। ३. मणिपुर चक-यह चक्र नाभि प्रदेश में मेरुदण्ड के सामने स्थित होता है। यहाँ से अनेकानेक नाड़ियाँ अंग-प्रत्यंगों तक जाती हैं। इस केन्द्र के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर विज्ञान का दर्शन किया जाता है। यह चक्र अग्नि तत्त्व प्रधान है और लाल रंग से सुशोभित है। नाभि मंडल के ठीक ऊपर दाहिनी ओर यकृत में तैजस-सूक्ष्म विद्युत शरीर (Etheric body) सूर्य जैसा देदीप्यमान होता है। पाचन तन्त्र में यह सहयोगी है। इस चक्र की बायीं ओर प्लीहा (तिल्ली) में इसका स्राव प्रवाहित होता है। हमारे शरीर में पेंक्रियाज से इन्सुलिन रस निकलता है जो आमाशयिक रस तथा गाल-ब्लेडर से
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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