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धर्मध्यान की सामग्री
परिग्रह त्याग, कषाय निग्रह, व्रतधारण इन्द्रिय और मनोविजय ये सब ध्यान की उत्पत्ति में सहायभूत सामग्री है । ३७
योग-प्रयोग- अयाग / २२१
धर्मध्यान को उत्तेजित करने वाले कारणों में वैराग्य, तत्त्वों का ज्ञान, साम्यभाव और परिषह जय इत्यादि भी प्रमुख माने जाते हैं।" तत्वानुशासन में द्रव्य, क्षेत्र, कालं और विवक्षा भेद से दृष्टता और ध्यान के तीन प्रकार बताए हैं ।
१. उत्तम सामग्री से ध्यान उत्तम होता है ।
२. मध्य सामग्री से ध्यान मध्यम और
३. जघन्य सामग्री से जघन्य ध्यान माना गया है । ३९
ध्यान का आलंबन
ध्यान का आलंबन एक रूप नहीं होता। जिस साधक को जो भी अनुकूल है उसी आलंबन से ध्यान सिद्ध होता है। पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत-ये ध्यान के आलम्बन हैं। जप, तप, मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र, श्वास, केवल जानना, केवल देखना इत्यादि ध्यान को सिद्ध करने के आलंबन है ।
ध्वनि, नाद, ज्योति, त्राटक, प्राणायाम इत्यादि भी ध्यान के आलम्बन हैं ।
ध्वनि, श्वास, शब्द आदि में कम्पन होते हैं। तरंगें होती हैं वह जब मन से जुड़ जाते हैं और ध्यान में एकाग्रता स्थित हो जाती है तब अनेक ग्रन्थियाँ सुलझ जाती हैं। ध्यान का विषय
स्थानांगसूत्र में ध्यान के चार प्रकार प्राप्त होते हैं। जैसे- “धम्मेझाणे चद्रव्विहे चडप्पडोयारि पण्णत्ते, तं जहा आंणा - विज अवाय-विजए, विवाग-विजए संगण - विजए -" अर्थात् आज्ञा, अपाय, विपाक और संस्थान इस प्रकार धर्मध्यान का ध्येय चार भेदों से प्रस्तुत किया है।
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३७. ध्यान स्तव - ७१
३८. द्रव्य संग्रह टीका - ५७/२२९/३.
३९. तत्त्वानुशासन - ४८-४९
आज्ञा-विचय
तीर्थंकर भगवान् की आज्ञानुसार विचय अर्थात् आत्मनिरीक्षण । साधक को आत्म-निरीक्षण करना है अपनी वृत्तियों का, जैसे हिंसात्मक भाव जागृत हुआ, क्यों हुआ कहाँ से हुआ, होने का कारण क्या, अनुप्रेक्षा कितनी बार हुई, पश्चात्ताप कितनी