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________________ २२२ / योग-प्रयोग-अयोग बार किया, प्रायश्चित्त कैसा किया? पुनः नहीं होवे ऐसा एकरार किया या नहीं इत्यादि प्रश्नों का निरीक्षण आज्ञाविचय ध्यान का विषय है। तत्त्वार्थसूत्र में भी यही चार प्रकार प्राप्त होते हैं । इन चारों की विचारणा के लिए एकाग्र मनोवृत्ति करना धर्मध्यान है। यह अप्रमत्त संयत को होता है। अपाय-विचय अपाय का अर्थ है दुर्गुण एवं दोष । अनादि काल से आत्मा के साथ रहे हुए मिथ्यात्व, अव्रत प्रमाद, कषाय, योग आदि दुर्गुणों के स्वरूप का निर्णय करके उनसे छूटने का उपाय सोचना "अपायविचय" धर्मध्यान है। जैसे अपने दुर्गुणों का निरीक्षण और परीक्षण करना क्रोधादि कषाय की मात्रा कितनी है ? क्या उसमें परिवर्तन होता है या नहीं ? अगर होता है तो कितनी मात्रा में होता है ? कर्म बन्धन क्यों होता है, उसके होने का कारण क्या है ? उस बन्धन से छूटने का उपाय क्या है ? हेमचन्द्राचार्य कृत योगशास्त्र में इस अपाय-विचय ध्यान के फल का निर्देश किया गया है। अपाय-विचय ध्यान करने वाला इहलोक एवं परलोक सम्बन्धी अपायों का परिहार करने के लिए उद्यत हो जाता है और उसके फलस्वरूप पाप-कर्मों से पूरी तरह निवृत्त हो जाता है, क्योंकि पाप-कर्मों का त्याग किए बिना अपाय से बचा नहीं जा सकता ।४० जीव का स्वभाव अक्रिय अवस्था का है, राग क्रिया, द्वेष क्रिया, कषायक्रिया, मिथ्यात्वादि आश्रवक्रिया या हिंसादि कायिकी क्रिया आदि रूप नहीं है क्योंकि क्रोध से प्रीति तत्व का, मान से विनय तत्व का, माया से मित्रता का और लोभ से सर्व वस्तु स्थिति का विनाश होता है अतः जनमत को प्राप्त कर कल्याण करने वाले जो उपाय हैं उनका चिन्तवन करना चाहिए।४१ ___ हरिवंश पुराण में अपाय विचय धर्मध्यान को उपाय-विचय भी कहा है जैसे-मन-वचन-काया-इन तीन योगों की प्रवृत्ति ही प्रायः संसार का कारण है, इन प्रवृत्तियों का त्याग किस प्रकार हो सकता है, इस प्रकार शुभ लेश्या से अनुरंजित जो चिन्ता का प्रबन्ध है वह अपाय-विचय है तथा पुण्य रूप योगवृत्तियों को अपने आधीन करना उपाय कहलाता है, वह उपाय किस प्रकार हो सकता है, इस प्रकार के संकल्पों की जो संतति है, वह अपाय विचय धर्मध्यान है । ४०. योगशास्त्र - १०-११ ४१.. कल्लाणपावगाण उपाये विचिणादि जिणमद मुवेच्च - धवला - १७१२-१५४४
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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