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________________ योग-प्रयोग-अयोग/ १२९ का क्षय हो जाता है।२१भक्तिपूर्वक ध्यान में संलीन होने से जन्म-जन्म के निबिड कर्मबन्धन सहज विमोचन हो जाते हैं । २२ अरिहंत भक्ति से बोधिलाभ की प्राप्ति ___ श्री अरिहंत जिनवर की भक्ति से दर्शन विशुद्धि की प्राप्ति होती है । दर्शन विशुद्धि के बिना अरिहन्त भक्ति संभव नहीं होती । इस प्रकार दर्शन विशुद्धि द्वारा अरिहन्त भक्ति से अनेक लाभ होते हैं। जैसे प्रवचन की आराधना, सन्मार्ग की दृढ़ता, कर्तव्यता का निश्चय, शुभाशय की वृद्धि तथा सानुबन्ध-शुभ अनुष्ठान की प्राप्ति होती है। भगवान की भक्ति मुक्ति की दाता है। भक्ति और मुक्ति का परस्पर साध्य-साधक का सम्बन्ध है। मुक्ति साध्य है, भक्ति साधक है। भगवद भक्ति के प्रभाव से दुखक्षय, समाधि मरण और बोधिलाभ की प्राप्ति होती है २४ भक्ति अर्थात् प्रकृष्ट नमन, काया से नमन, वचन से स्तवन, मन से सत् चितवन, अर्थात् मन, वचन, काया का सानुकूल वर्तन भक्ति की पराकाष्ठा है। भगवंत को भाववंदन उत्कृष्ट भक्ति है। अरिहन्त परमात्मा की भक्ति रूप महिमा को शास्त्रकार भगवन्तों ने इस तरह बताया है - भत्तीए जिणवराणं पदमामाए खिणपिज्ज दोसाणं आरुग्ग बोहिलार्म समाहि मरणं च पावेति २५ तात्त्विक दृष्टि से देखा जाये तो जहाँ और जिस प्रकार अरिहन्त परमात्मा की आज्ञा का पालन होता है, वह अरिहन्त भगवन्त की भक्ति के ही प्रकार हैं । अत: परमात्मा के प्रति जो श्रद्धा, विनय, वैयावृत्य, सद्भाव, सेवा, समर्पण, वंदन, पूजन, सत्कार, सन्मान, प्रमाण, प्रशंसा, प्रार्थना, प्रमोद, प्राणिधान, स्मरण, स्तवन, कीर्तन, कथा, उत्सव, उपासना, आदर, आराधना, एकाग्रता, शरणागति, वात्सल्य और योग इत्यादि भक्ति के ही प्रकार हैं। इस प्रकार भक्ति का स्वरूप व्यापक और अनेक अपेक्षाओं से परिपूर्ण है। २१. भत्तिए जिणवराणं खिज्जन्ती पुव्वसंचिया कम्मा । गुणपगरिसबहुमाणो कम्मवणदवाणलो जेण ॥ श्री जिनभद्रगणीजी श्री जिनभदगणीजी २२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-श्री सिद्धसेन दिवाकर श्लो. 7. २३. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-८/३, ४/१८९/५ २४. कित्तिय वंदिस महिया-जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा, आरूग्ग बोहिलाभं, समाहि वर मुत्तमं दिन्तु ॥-लोगस्स सूत्र स्वाध्याय गा..६ २५.. आवश्यक नियुक्ति ।
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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