SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ / योग- प्रयोग- अयोग करता है। उसके सामने घटनायें आती हैं वह जानना है भोगना नहीं। ज्ञान योग का फल है जानना और देखना। केवल ज्ञाता, केवल दृष्टा ज्ञानी के लिए न कोई प्रिय है, न कोई अप्रिय । न किसी का संयोग है, न किसी का वियोग है। परिस्थिति घटना के रूप में घटित होती रहती हैं। परिवर्तन परिस्थिति के अनुरूप बदलता है। ज्ञान ज्ञान स्वरूप में विद्यमान रहता है । ज्ञेय का पर्याय ज्ञान नहीं होता और ज्ञान का स्वभाव ज्ञेय नहीं होता। दोनों भिन्न होते हैं। एक ज्ञेय है और एक ज्ञान है। ज्ञानी, ज्ञेय को जानता है • और देखता है। उसके लिए ज्ञान ज्ञान ही रहेगा और ज्ञेय ज्ञेय ही रहेगा। अगर इतना हो जाय तो ज्ञान योग फलित हो जायेगा। फिर खाते हैं तो क्या, बैठे हैं तो क्या, चलते हैं तो क्या, • बोलते हैं तो क्या ज्ञाता सदा जागृत है। क्योंकि उसके जीवन में ज्ञान घटित हो जाता है।. १. योग एक प्रयोग है ज्ञान की कसौटी का अभ्यास क्रम में अपने आपको जानो और पूछो क्या आपको अस्तित्त्व का बोध है ? क्या शरीर और आत्मा भिन्न है ? क्या ज्ञान बाह्य प्रवृत्ति में है ? क्या ज्ञानी को कल्पना, स्मृति, विकल्प सताते हैं ?
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy