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________________ १०८ / योग-प्रयोग-अयोग इसका उद्देश्य है शरीर की ममता एवं चंचलता को कम करना और स्थिरतापूर्वक आत्मलीन होना। यह आसन खड़े होकर, बैठकर या कमजोरी की हालत में लेटकर भी किया जा सकता है। इस आसन की मुख्य विशेषता यही है कि मन, वचन एवं काय के योग अधिकाधिक स्थिर होवें। सभी तीर्थंकर किसी न किसी आसन में कैवल्य-ज्ञान प्राप्त करते थे । जैसे-परमात्मा. महावीर ने गोदोहासन में कैवल्य-ज्ञान पाया था। ४. कायोत्सर्ग का कालमान कायोत्सर्ग की प्रक्रिया कष्टप्रद नहीं है। उससे शारीरिक विश्रान्ति और मानसिक शान्ति प्राप्त होती है। इसलिए वह चाहे जितने लम्बे समय तक किया जा सकता है। कम से कम पन्द्रह बीस मिनट तो करना ही चाहिए । कायोत्सर्ग में मन को लोगस्स आदि सूत्र में लगाया जाता है, इसलिए उसका कालमान उसकी गिनती से भी किया जा सकता है, जैसे - १२ लोगस्स,२० लोगस्स, ८ लोगस्स इत्यादि कायोत्सर्ग है। ठाणाइए-स्थान, स्थिर होकर शांत बैठना, इसमें सिद्धासन भी लगाया जा सकता है। किसी एक पैर को वृषण के पास उरू के निम्नवर्ती भाग से सटाकर बैठिए और दूसरे पैर को जंघा और उरू के बीच में रखिए। दूसरी बार में पैरों का क्रम बदल दीजिए। १. इस आसन से वीर्य ऊर्चीकरण होता है। २. मन की एकाग्रता होती है। ३. कामवाहिनी नाड़ी पर नियन्त्रण होने से वृत्तियों का निरोध । उक्कुडु आसाणए- ९ उत्कटिकासन-दोनों पैर और नितम्ब भूमि से लगे रहें वैसे बैठना। उकड् बैठना-उत्कटिकासन है। अर्थात् अंगूठों को भूमि पर टिकाकर, एड़ियों को ऊपर की ओर उठा कर, उन पर गुदा रखकर बैठना । पद्मासन एक जांघ के साथ दूसरी जांघ को मध्यभाग में मिलाकर रखना “पद्मासन" है। पद्मासन ध्यान और समाधि के लिए उपयुक्त आसन है। इस आसन में अनेक तीर्थंकर भगवन्तों को कैवल्यज्ञान हुआ है। ९. योगशास्त्र-४/१३४ १०. योगशास्त्र श्लो. १२९
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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