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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन स्नानागार ज्ञाताधर्मकथांग में स्नानागार के लिए मज्जनगृह240 शब्द का प्रयोग किया गया है। राजा श्रेणिक के मज्जनगृह का फर्श विचित्र मणियों और रत्नों से निर्मित था। उसके चारों ओर जालियाँ लगी हुई थी। उस मज्जनगृह में रत्न और मणियों से युक्त एक पीठ बाजौठ भी बना था।241 भोजनशाला ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार राजाओं के राजगृह में भोजनशाला भी होती थी। विशेष आयोजन पर विशाल भोजनमंडप बनता था, जहाँ पर मित्र, बन्धु आदि ज्ञाति, निजकजन, परिजन एवं राजपरिवार के सदस्यों आदि के साथ भोजनशाला होने का उल्लेख मिलता है। उन भोजनशालाओं में प्रतिदिन चार प्रकार का भोजन (असणं-पाणं-खाइम-साइम) तैयार होता था।243 नन्दमणिकार सेठ ने एक विशाल भोजनशाला बनवाई, जो सैंकड़ों खम्भों वाली थी। उस भोजनशाला में अनेक लोग जीविका, भोजन और वेतन देकर रखे गए थे। भोजनशाला के लिए 'महानसशाला' शब्द काम में लिया गया है।244 भोजन बनाने वालों अर्थात् पकाने वालों को 'महाणस' (महाणसि) कहा जाता था।245 प्रसूतिगृह ज्ञाताधर्मकथांग में प्रसूतिगृह या प्रसूतिभवन आदि का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन मेघकुमार246, देवदत्त247, मल्ली248, कनकध्वज249 और पोट्टिला पुत्री50 का जन्म एक अलग कक्ष में होना यह संकेत करता है कि उस समय प्रसूतिगृह जैसा कोई अलग कक्ष रहा होगा। भाण्डागार यद्यपि ज्ञाताधर्मकथांग में भाण्डागार का उल्लेख नहीं मिलता लेकिन भाण्डागारिणी (भण्डारी) का उल्लेख मिलता है, जिसके आधार पर भाण्डागार के अस्तित्व को स्वीकार किया जा सकता है। धन्य सार्थवाह ने अपनी पुत्रवधू रक्षिका को अपने घर के आभूषणों, कांसा आदि बर्तनों, दूष्य-रेशमी आदि मूल्यवान वस्त्रों, विपुल धन-धान्य, कनक, रत्न, मणि, मुक्ता, शंख, शिला, प्रवाल, लाल रत्न आदि सम्पत्ति की भाण्डागारिणी नियुक्त कर दिया।251 श्रीगृह ज्ञाताधर्मकथांग में 'श्रीगृह' यानी राजकोष का उल्लेख एकाधिक बार 94
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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