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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन नगर-विन्यास प्राचीनकाल से वास्तुकला में नगर-निर्माण का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ज्ञाताधर्मकथांग में वास्तुपाठकों का उल्लेख मिलता है। द्वारिकानगरी का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यह नगरी पूर्व से पश्चिम नौ योजन चौड़ी और दक्षिण से उत्तर बारह योजन लम्बी थी, जो देवलोक के समान उत्कृष्ट सम्पदाओं से परिपूर्ण थी।204 औपपातिक सूत्र के अनुसार नगरों में तिराहे, चौराहे, चत्वर और राजमार्ग आदि बने होते थे। नगर के चारों ओर विशाल कोट का निर्माण किया जाता था। कोट के चारों ओर गहरी खाई खोदी जाती थी। नगरियाँ राजमार्गों, अट्टालिकाओं, गुमटियों, चरिकाओं, द्वारों, खिड़कियों, गोपुरों-नगरद्वारों, तोरणों आदि से सुशोभित थी। नगर में क्रीड़ावाटिका, उद्यान, बगीचे, कुएं, तालाब, बावड़ी, खाई आदि होते थे।205 राजभवन निर्माण ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न राजभवनों का उल्लेख मिलता है। मेघकुमार के भवन का वर्णन करते हुए कहा गया है- वह अनेक स्तंभों पर बना हुआ था। उसमें लीलायुक्त अनेक पुतलियाँ लगी हुई थी। उसमें ऊँची और सुनिर्मित वज्ररत्न की वेदिका थी। उस भवन में ईहा-मृग, वृषभ, तुरंग, मनुष्य, मकर आदि के चित्र चित्रित किए हुए थे। उसमें सुवर्ण, मणि एवं रत्नों की स्तूपिकाएँ बनी हुई थी। उसका प्रधान शिखर नाना प्रकार की पाँच वर्गों की घंटाओं सहित पताकाओं से सुशोभित था। वह अत्यन्त मनोहर था।06 धारिणी रानी का भवन मणियों-रत्नों से युक्त शिखर, कपोत-पाली, गवाक्ष, अर्ध-चन्द्राकार सोपान, निर्मूहक, कनकाली तथा चन्द्रमालिका आदि घर के विभागों की सुन्दर रचना से युक्त था। बाहर से उसमें सफेदी की गई थी, कोमल पाषाण से घिसाई की गई थी, अतएव वह चिकना था। स्वर्णमय आभूषणों, मणियों एवं मोतियों की लंबी लटकने वाली मालाओं से उसके द्वार सुशोभित हो रहे थे।207 ___ ज्ञाताधर्मकथांग में भवन के सभी प्रमुख अंगों का पूर्ण विवरण तो नहीं मिलता, लेकिन उनका नामोल्लेख एवं कुछ जानकारियाँ मिलती हैं। इन जानकारियों और अन्य ग्रंथों के संदर्भो के आधार पर उन अंगों का विवेचन इस प्रकार हैद्वार ज्ञाताधर्मकथांग में द्वार का नामोल्लेख208 तथा इनकी साज-सज्जा का वर्णन 90
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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