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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन बसे हुए नगर को द्रोणमुख कहते हैं। आदिपुराण में ऐसे आपणक केन्द्र को, जो किसी नदी के तट पर बसा हो, द्रोणमुख कहा गया है। आचारांग चूर्णि में द्रोणमुख उसे कहा गया है जहाँ जल और थल दोनों से आवागमन होता था, जैसे- ताम्रलिप्ति और भरूकच्छ। कौटिल्य अर्थशास्त्र में इसकी स्थिति चार सौ ग्रामों के मध्य कही गई है।182 पट्टन
विशालनगर जहाँ नानादेशों से अनेक पदार्थ विक्रयार्थ आते हों। (सचित्र अर्द्धमागधी कोष, भाग 3, पृ. 407) जल और थल मार्ग में से जहाँ एक मार्ग से जाया जाए। (कल्पसूत्र पृ. 119)
ज्ञाताधर्मकथांग में पट्टन' शब्द का नामोल्लेख मिलता है। 83 विभिन्न संदर्भो में किए गए 'पट्टन' शब्द के प्रयोग के आधार पर कहा जा सकता है कि 'पट्टन' उस नगर को कहते हैं, जो समुद्र तट पर स्थित हों, जिसमें वणिक एवं विभिन्न जाति के लोग रहते हों, वस्तुएँ क्रय-विक्रय की जाती हों तथा वाणिज्य एवं व्यवसाय का बोलबाला हो और बाहरी देशों से क्रय-विक्रय के लिए लाई गई सामग्री से परिपूर्ण हो। व्यवहारसूत्र के अनुसार जहाँ नौकाओं द्वारा गमन होता है उसे 'पट्टन' कहते हैं एवं जहाँ नौकाओं के अतिरिक्त गाड़ियों एवं घोडों से भी गमन होता है, उसे 'पत्तन' कहा गया है।184 पुटभेदन
ज्ञाताधर्मकथांग में 'पुटभेदन' शब्द का प्रयोग एकाधिक स्थानों पर मिलता है।185 बड़े-बड़े व्यापारिक केन्द्रों के लिए अमरकोश में 'पुटभेदन' शब्द का उल्लेख मिलता है, यहाँ पर राजा के नौकर आदि बसते थे। बड़े-बड़े नगरों में थोक माल की गांठे मुहरबंद आती थी और मुहर तोड़कर माल को फुटकर व्यापारियों को बेच दिया जाता था। मुहरों के इस प्रकार तोड़ने के विशिष्ट व्यापारिक केन्द्र को पुटभेदन संज्ञा से संबोधित किया गया है, ऐसी मुहरें पुरातत्त्व की खुदाई से प्राप्त हुई हैं।187 कर्वट
ज्ञाताधर्मकथांग में 'कब्बड' शब्द आया है।188 इसे खर्वट भी कहते हैं। कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार इसकी स्थिति दो सौ ग्रामों के बीच होती है, यहाँ इसे खाटिक कहा है।189 आदिपुराण में इसे पर्वताच्छादित माना है। १०
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