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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण जाता है। पंचाल जनपद राज्य का विस्तार रूहेलखण्ड और गंगा-यमुना द्वाब के एक भाग पर था। इसकी उत्तरी और दक्षिणी दो शाखाएँ थीं। उत्तर पंचाल की राजधानी अहिच्छत्रा और दक्षिण-पंचाल की कांपिल्यपुर थी।105 __ पंचाल के प्राचीन राजाओं में से दुम्मुख (दुर्मुख) नामक राजा अत्यन्त प्रभावशाली था।06 पाणिनि व्याकरण में इसके तीन विभाग मिलते हैं- (1) पूर्व पंचाल, (2) अपर पंचाल और (3) दक्षिण पंचाल ।” हेमचन्द्राचार्य ने अभिधान चिंतामणि में पंचाल का दूसरा नाम प्रत्यग्रथ और उसकी राजधानी अहिच्छत्रा बताया है।108 कांपिल्यपुर ज्ञाताधर्मकथांग में कांपिल्यपुर का नामोल्लेख मिलता है।109 यह दक्षिण पंचाल की राजधानी थी। कांपिल्यपुर अथवा कांपिल्यनगर (कंपिल, जिला फर्रूखाबाद) गंगा के तट पर अवस्थित था।1० द्रौपदी का स्वयंवर भी यहाँ बड़ी धूमधाम से रचा गया था। कांपिल्यपुर का राजा जितशत्रु मल्ली भगवती पर आसक्त हो गया, उसने मल्ली भगवती से रानी रूप में मंगनी करने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन जब राजा कुम्भ ऐसा करने से इंकार कर देता है तो जितशत्रु उस पर आक्रमण कर देता है। 12 कनिंघम ने काम्पिल की पहचान उत्तरप्रदेश के फर्रूखाबाद जिले में फतेहगढ़ से 28 मील उत्तर-पूर्व, गंगा के समीप में स्थित 'कांपिल' के रूप में की है।13 अहिच्छत्रा ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार अहिच्छत्रा नगरी चम्पानगरी के उत्तर-पूर्व दिशा में थी।114 चम्पा के साथ इसका व्यापार होता था। यह नगरी धनधान्य से परिपूर्ण थी।15 इसकी गणना अष्टापद उज्जयन्त (गिरनार), गजाग्रपदगिरि, तक्षशिला और रथावर्त नामक तीर्थों के साथ की गई है। यह नगरी शंखवती'17, प्रत्यग्रथ18 एवं शिवपुर' नाम से भी प्रसिद्ध थी। जैन मान्यता के अनुसार धरणेन्द्र ने यहाँ अपने फण (अहिच्छत्र) से पार्श्वनाथ की रक्षा की थी। 81
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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