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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन अत्यन्त दुःखों की तीव्रता के केन्द्र होते हैं। वहाँ पर जीव बिलों में उत्पन्न होते हैं और परस्पर एक-दूसरे को मारने-काटने आदि के द्वारा अत्यन्त दुःख भोगते रहते हैं। राजवर्तिक में नरक को परिभाषित करते हुए लिखा है-"शीताष्णासद्वेद्योदयापादितवेदनया नरान कायन्तीति शब्दायन्त इति नारकाः।" अथवा "पापकृतः प्राणितः आत्यन्तिकं दुःखं नृणन्ति नयन्तीति नारकाणि।" जो नारकों को शीत, उष्ण आदि वेदनाओं से शब्दाकुलित कर दे वह नरक है अथवा पापी जीवों को आत्यन्तिक दुःखों को प्राप्त कराने वाले नरक हैं। एक अन्य परिभाषा के अनुसार 'नरकेषु भवा नारकाः' अर्थात् नरकों में जन्म लेने वाले जीव नारक धवला में नरक गति को परिभाषित करते हुए कहा है कि जिस गति का उदय सम्पूर्ण अशुभ कर्मों के उदय का सहकारीकरण है, उसे नरकगति कहते हैं- "यस्या उदयः सकलाशुभकर्मणामुदयस्य सहकारीकरणं भवति सा नरकगतिः'' अधोलोक ज्ञाताधर्मकथांग में अधोलोक का उल्लेख मिलता है।' अधोलोक में मध्यलोक से लगती हुई सबसे पहले रत्नप्रभा पृथ्वी है। इससे कुछ कम एक राजू नीचे शर्कराप्रभा है। इसी प्रकार से एक-एक राजू नीचे बालुकाप्रभा आदि पृथ्वियाँ हैं। अधोलोक की ऊँचाई सात राजू झाझेरा प्रमाण बताई गई है। देवलोक ज्ञाताधर्मकथांग में देवलोक का उल्लेख मिलता है। जिस क्षेत्र में देवगण रहते हैं उसे देवलोक कहते हैं। देवलोक में अतिपुण्यशाली जीव जन्म लेते हैं। वहाँ सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ रहती हैं। देवों का आयुष्य बहुत लम्बा होता द्वीप 'द्वीप' शब्द का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथांग में कई स्थानों पर हुआ है। भूमि का वह भाग जो चारों ओर जल से घिरा हो, टापू कहलाता है। संस्कृत हिन्दी कोश में कहा गया है कि द्विर्गता द्वयोर्दिशोर्वागता आपो यत्र द्वि+अप्, अप ईप अर्थात् टापू का अर्थ है- शरण स्थान, आश्रयगृह, उत्पादन स्थान, भूलोक का एक भाग। ये द्वीप मध्यलोक में स्थित तथा समुद्रों से वेष्टित जम्बूद्वीपादि 70
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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