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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन के होते हुए भी उसमें एक ही आत्मा का संचरण है- भारतीयता।
सारांशतः यह कहा जा सकता है कि इन विशेषताओं के कारण ही भारत युग-युगान्तर तक विश्वगुरु रहा है और विश्व इतिहास में अपनी विशिष्ट अस्मिता से विश्व गगनमण्डल को आलोकित कर रहा है।
सारा
ज्ञाताधर्मकथांग में संस्कृति ज्ञाताधर्मकथांग की कथाएँ केवल तत्त्व दर्शन को समझने के लिए ही नहीं अपितु तत्कालीन समाज और संस्कृति को जानने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
आगम ग्रंथों का कोई एक रचनाकाल निश्चित नहीं है। महावीर के निर्वाण के बाद वल्लभी में सम्पन्न हुई आगम-वाचना के समय से इन आगमों का स्वरूप निश्चित हुआ है सुदीर्घ अतीत का जनजीवन इन आगमों में वर्णित हुआ है। ज्ञाताधर्मकथांग में प्राप्त समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, भौगोलिक स्थिति एवं राजनैतिक साक्ष्य कम उपलब्ध हैं, अत: उस समय की संस्कृति को जानने के लिए इन्हीं साहित्यिक साक्ष्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। आगम ग्रंथों में तत्कालीन सांस्कृतिक स्थिति का यथार्थ चित्रण मिलता है जिससे संस्कृति का मूल्यांकन आसानी से किया जा सकता है।
भारत के गौरव ग्रंथों में जैन आगमों का स्थान सर्वोपरि है, उनमें भी कथाओं वाले आगम जो कि सभी की रूचि का विषय होने के कारण अपना विशेष महत्व रखते हैं। यदि हम महावीरकालीन एवं उससे पूर्व की संस्कृति को जानना चाहते हैं तो हमें ज्ञाताधर्मकथांग का सूक्ष्म अध्ययन करना होगा तथा समकालीन अन्य परम्पराओं के साहित्य की जानकारी रखना भी आवश्यक है। ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित संस्कृति का बिन्दुवार संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार हैसामाजिक जीवन ___ज्ञाताधर्मकथांग तक चतुर्वर्ण व्यवस्था व्यापक हो चुकी थी। ज्ञाताधर्मकथांग की कथाओं में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के उल्लेख हैं। ब्राह्मण के लिए 'माहण' शब्द का प्रयोग मिलता है। महावीर को भी माहण और महामाहण कहा गया है। क्षत्रियों को अपनी एवं प्रजा की रक्षा करनी होती थी। उस समय के राजा क्षत्रिय कुल के होते थे। इन कथाओं में अनेक क्षत्रिय राजकुमारों की शिक्षा एवं दीक्षा का वर्णन है।” वैश्यों के लिए इभ्य, श्रेष्ठी, कौटुम्बिक, गाहावइ
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