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________________ संस्कृति के तत्त्व एवं ज्ञाताधर्मकथांग करते हुए कहा गया है- "सभी जीवों को अपना आयुष्य प्रिय है, सुख अनुकूल है और दुःख प्रतिकूल है। वध सभी को अप्रिय लगता है और जीना सबको प्रिय लगता है।"56 भगवान महावीर ने अठारह धर्मस्थानों (1. प्राणातिपात विरमण, 2. मृषावाद विरमण, 3. अदत्तादान विरमण, 4. मैथुन विरमण, 5. परिग्रह विरमण 6. रात्रि भोजन त्याग, 7. पृथ्वीकाय रक्षण, 8. अप्काय रक्षण, 9. अग्निकाय रक्षण, 10. वायुकाय रक्षण, 11. वनस्पतिकाय रक्षण, 12. त्रसकाय रक्षण, 13. अकल्पनीय वस्तु ग्रहण न करना, 14. गृहस्थ के बर्तन में नहीं खाना, 15. पलंग काम में न लेना, 16. गृहस्थ के घर नहीं बैठना, 17. स्नान का त्याग, 18. शोभा (शृंगार वर्जन) में प्रथम स्थान अहिंसा का कहा है। इसे उन्होंने सूक्ष्मता से देखा है। सब जीवों के प्रति संयम रखना अहिंसा है। 7 भारतपाकिस्तान के बीच अत्यन्त तनावपूर्ण स्थिति होने के बावजूद युद्ध न होने का कारण भारतीय संस्कृति का अहिंसा प्रधान या अहिंसा-आधारित होना है। 8. संस्कार सम्पन्न संस्कृति भारतीय समाज एवं संस्कृति की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विशेषता इसकी संस्कार सम्पन्नता है। यहाँ यह स्वीकार किया गया है कि मनुष्य का जीवन संस्कारों का पुञ्ज है और उसका सम्पूर्ण जीवन आश्रमों की भांति ही इन संस्कारों में विभक्त किया गया है। इन संस्कारों की संख्या 16 स्वीकार की गई है तथा मानव जीवन षोड्ष संस्कारयुक्त माना गया है। ये सम्पूर्ण संस्कार मनुष्य के जन्म के पूर्व से लेकर मृत्यु पर्यन्त चलते रहते हैं। इन संस्कारों को सम्पन्न किए बिना जीवन को पूर्णता नहीं मिलती है। अशुभ शक्तियों के प्रभाव से व्यक्ति को पूर्णता नहीं मिलती है। अशुभ शक्तियों के प्रभाव से व्यक्ति को बचाना, संस्कार्य व्यक्ति के हित के लिए अभीष्ट प्रभावों को आमंत्रित एवं आकर्षित करना, सांसारिक समृद्धि प्राप्त करना, व्यक्ति को आत्माभिव्यक्ति के अवसर प्रदान करना तथा इसके अतिरिक्त स्वर्ग एवं मोक्ष की प्राप्ति, नैतिक गुणों का विकास, व्यक्तित्व का निर्माण और विकास अथवा सामाजिकीकरण तथा भारतीय जीवन में आध्यात्मिकता के महत्व को प्रकट करना भी संस्कारों का उद्देश्य कहा जा सकता है। सोलह संस्कारों में आज सिर्फ जन्म, विवाह और अंत्येष्टि सम्बन्धी संस्कार ही विशेष रूप से प्रचलन में हैं, अन्य संस्कार पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव और वैज्ञानिक युग की चकाचौंध में गुम होते जा रहे हैं। संस्कृति के 55
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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