SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन वे अर्जुन को कहते हैं कि मनुष्य का जो कर्त्तव्य है, वही उसका सबसे बडा धर्म है, वही उसकी सच्ची उपासना है। प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए ईश्वर को प्राप्त कर सकता है- "स्वकर्मणा तमय॑चः सिद्धि विन्दति मानवाः। 52 ___ अब प्रत्येक कर्म को ही धर्म का स्वरूप दे दिया गया है तब यह बात एकदम निश्चित है कि भारतीय संस्कृति पूर्णरूपेण धर्मपरायण-धर्मोन्मुखी संस्कृति 6. कर्म की प्रधानता भारतीय संस्कृति में कथनी और करनी की समानता पर बल दिया गया । है। केवल भावनाओं या आदर्शों से विकास के शिखर पर आरोहण नहीं किया जा सकता है। वही मानव श्रेष्ठ मानव स्वीकार किया गया है जिसके हाथ में कर्मठता की कुल्हाड़ी हो। असत्य कहना या कहकर न करना भी मानव की दुर्बलता मानी गई है। सत्कर्म पर विशेष बल दिया गया है। संस्कृति सम्मत आचरण को ही उपयुक्त माना गया है तथा यह निर्देश भी दिया गया है कि जहाँ संशय है वहाँ उसी मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जिसका अनुकरण पूर्वकाल में किया गया है। कर्मफल को वर्णित करते हुए कहा गया है- “अच्छे कर्म का फल अच्छा होता है। बुरे कर्म का फल बुरा होता है।''53 जो व्यक्ति अपने नियत कर्म के अनुसार आगे बढ़ता है, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे दक्षता, पूर्णता एवं सफलता प्राप्त होती है। जिसका उल्लेख भगवान श्रीकृष्ण गीता में करते हैं "स्वेस्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धि लभते नरः। स्वकर्म निरतः सिद्ध यथा विन्दति तच्छण।।''54 निष्काम कर्मयोग को भी बहुत उच्चता प्रदान की गई है। कर्म में रत रहने वाले व्यक्ति को ही कर्मयोगी कहा गया है। इसी के साथ-साथ भारतीय दर्शन में चार पुरुषार्थ स्वीकार किए गए हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। मनुष्य का प्रत्येक कर्म इन चार पुरुषार्थों पर आधारित होता है। 7. अहिंसा परमोधर्म:55 __ भारतीय संस्कृति में अहिंसा को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। हिंसा को हर दृष्टि में त्याज्य माना गया है। हिंसा चाहे सूक्ष्म रूप में हो या व्यापक रूप में उसे किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं किया गया है। सभी धर्मों में अहिंसामय जीवन को सर्वोच्च मान्यता दी गई है। जैनागम में अहिंसा के आधार को स्पष्ट .54
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy