SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन दर्भ और मंत्र से होता है- जिस प्रकार अशुचि वस्तु को मिट्टी से मांजकर तथा जल से धोकर शुचि किया जा सकता है ठीक उसी प्रकार जीव भी जल-स्नान से अपनी आत्मा को पवित्र करके निर्विघ्न रूप से स्वर्ग प्राप्त करता है। परिव्राजक दानधर्म, शौचधर्म और तीर्थस्थान का उपदेश और प्ररूपण करते थे। इनके प्रवास स्थल को मठ कहा जाता था । सांख्य मत के परिव्राजक व परिव्राजिकाएँ गेरू से रंगे हुए वस्त्र धारण करते थे। त्रिदण्ड, कुण्डिया (कमंडलु), मयूरपिच्छ का छत्र, छन्नालिक (काष्ठ का एक उपकरण), अंकुश (वृक्ष के पत्ते तोड़ने का एक उपकरण), पवित्री (ताम्र धातु की बनी अंगूठी) और केसरी (प्रमार्जन करने का वस्त्र), उपकरण उनके हाथ में रहते थे । सात चार वेदों का उल्लेख तथा होम करवाने 306 का संदर्भ वैदिक धर्म की उपस्थिति मात्र दर्ज करवाता है । इस संदर्भ में अन्य किसी प्रकार का विवेचन नहीं मिलता है । उपर्युक्त अन्वेषणात्मक विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि सम्यक्दर्शन परिकल्पना है, सम्यक्ज्ञान प्रयोग विधि है और सम्यक्चारित्र प्रयोग है । तीनों के संयोग से सत्य का पूर्ण साक्षात्कार होता है। ज्ञान का सार आचरण है और आचरण का सार निर्वाण की उपलब्धि है। -320
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy