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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन पश्चाताप करना ही प्रायश्चित तप है। ज्ञाताधर्मकथांग में मुनि मेघकुमार भगवान महावीर के समक्ष प्रायश्चित करते हुए देखे जाते हैं। वे संयम की प्रथम रात्रि में संयम से विचलित हो जाते हैं और भगवान महावीर के समझाने पर संयम-स्थिर हो जाते हैं और आत्मग्लानि से अभिभूत होकर भगवान महावीर के समक्ष प्रायश्चित करते हैं।267 इससे अपराधों का शोधन हो जाता है। 2. विनय तप गुरु आदि के प्रति विनम्रता का व्यवहार करना विनय तप है। इसके चार भेद हैं- (1) ज्ञान विनय (ज्ञान-ग्रहण, अभ्यास और स्मरण), (2) दर्शन विनय (जिनोपदेश में निःशंक होना), (3) चारित्र विनय (उपदेश के प्रति आदर प्रकट करना), (4) उपचार विनय (आचार्य को वन्दनादि करना)। गुरु के समक्ष खड़े होना, हाथ जोड़कर नमस्कार करना, आसन देना, गुरु के प्रति भक्ति रखना तथा हृदय से गुरु की सेवा करना आदि 'उपचार विनय' तप के प्रकार है। मुनि मेघकुमार66 एवं मुनि पंथक269 आदि अनेक साधक इस तप में लीन देखे जाते हैं। 3. वैयावृत्य तप आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैख्य, ग्लान, गण, कुल, संघ-साधु आदि पर यदि किसी प्रकार की व्याधि या परीषह आए तो उनकी अग्लान भाव से सेवा शुश्रूषा करना वैयावृत्य तप है। ज्ञाताधर्मकथांग में मुनि पंथक द्वारा अपने गुरु शैलक की अग्लान भाव से सेवा करके उनकी मनोवृत्ति को पुनः संयम में स्थिर करने का उल्लेख मिलता है। 4. स्वाध्याय तप ज्ञानार्जन हेतु शास्त्र आदि का अध्ययन करना स्वाध्याय तप है। इससे मनुष्य के ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है । यह तप पाँच प्रकार का होता है71(i)वाचना वाचना का तात्पर्य अध्ययन एवं अध्यापन से है। वाचना से जीव के कर्मों की निर्जरा होती है। (ii) पृच्छना पूर्व पठित शास्त्र के सम्बन्ध में शंका निवृत्ति के लिए गुरु से प्रश्न पूछना तथा सूत्र और अर्थ में उत्पन्न संशय को दूर करना पृच्छना है। 310
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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