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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन सर्वविरति के लिए रात्रिभोजन का त्याग अनिवार्य मानते हैं। अष्ट प्रवचन माता
पाँच समितियों और तीन गुप्तियाँ- ये आठ प्रवचन माता कहलाती है। ये माता की तरह मुनियों की प्रतिपालक हैं। उन्हें राग-द्वेष, आस्रव-बंध रूप संसार से बचाती हैं और चारित्र की रक्षाकर उन्हें मोक्ष-प्राप्ति में सक्षम बनाती हैं, अतः इन्हें अष्ट प्रवचनमाता कहते हैं। पञ्च समितियाँ
समिति का तात्पर्य है सम्यक् प्रवृत्ति। आध्यात्मिक क्षेत्र में इसका अर्थ है- अनन्त ज्ञानादि स्वभाव वाली आत्मा में लीन होना, उसका चिन्तन करना।207 सच्चा मुनि समिति के पालन में अन्तर्मुखी हो जाता है। ईर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेपण और उत्सर्ग- इन पाँच समितियों से उपर्युक्त पाँच महाव्रतों की रक्षा होती है। (1) ईर्या समिति
किसी भी जीव-जन्तु को क्लेश न हो, इस प्रकार सावधानीपूर्वक चार हाथ आगे की भूमि देखकर चलना ईर्या समिति है। ज्ञाताधर्मकथांग में भगवान महावीर मेघकुमार को दीक्षा देने के बाद समिति-गुप्ति का ज्ञान करवाते हैं। भगवान महावीर मेघ को ईर्या समिति का बोध करवाते हुए कहते हैं कि पृथ्वी पर युगमात्र दृष्टि रखकर चलना, निर्जीव भूमि पर खड़ा होना आचार संगत है।208 (2) भाषा समिति
निन्दा व चापलूसी आदि दूषित भाषाओं को त्यागकर संयत, नपे-तुले, हितकारी वचन बोलना भाषा समिति है। ज्ञाताधर्मकथांग में भगवान महावीर मेघ को हित, मित और मधुर भाषा का प्रयोग करने का उपदेश देते हैं।209 (3) एषणा समिति
उद्गम, उत्पादन आदि आहार सम्बन्धी बयालीस दोषों से रहित प्रासूक अन्नादि का ग्रहण स्वाध्याय और ध्यान की सिद्धि के लिए करना 'एषणा' समिति है। मेघकुमार के माता-पिता मेघकुमार को संयम की कठिनाईयों का बोध करवाते हुए कहते हैं कि श्रमण को आधाकर्मी, औदेशिक आदि दूषित आहार ग्रहण करना नही कल्पता है ।1० धर्मघोष स्थविर धर्मरूचि अनगार को प्रासूक और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य ग्रहण करके उसका आहार करने के
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