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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में प्रतिपादित धर्म-दर्शन स्थूल झूठ का त्याग करना ही श्रेयस्कर है। जिस झूठ से समाज में प्रतिष्ठा न रहे, प्रामाणिकता न रहे, प्रामाणिकता खण्डित होती हो, लोगों में अविश्वास उत्पन्न होता हो तथा राजदण्ड का भागी बनना पड़े, इस प्रकार के स्थूल झूठ का मन, वचन व काय से सर्वथा त्याग करना सत्याणुव्रत है। (3) अचौर्याणुव्रत अहिंसा के परिपालन के लिए चोरी का त्याग भी आवश्यक है। जिस वस्तु पर अपना स्वामित्व नहीं है, ऐसी किसी भी वस्तु को बिना अनुमति के ग्रहण करना चोरी है। वह मार्ग में पड़ी हुई, अधिक मूल्य वाली किसी भी वस्तु को ग्रहण नहीं करता। अचौर्याणुव्रती उपर्युक्त सभी प्रकार की चोरियों का परित्याग कर देता है। (4) ब्रह्मचर्याणुव्रत काम प्रवृत्ति के त्याग को ब्रह्मचर्य कहते हैं। (5) परिग्रह-परिमाण व्रत धन-धान्यादि बाह्य पदार्थों के प्रति ममत्व, मूर्छा या आसक्ति को परिग्रह कहते हैं। अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप धन-धान्यादि पदार्थों को सीमा में बांधकर उससे अधिक का त्याग करते हुए उनके प्रति ममत्व का विसर्जन करना परिग्रह-परिमाणवत है। __तत्त्वार्थसूत्र में- "क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्ण धनधान्यदासीदासकुप्य प्रमाणतिक्रमाः"135 कहकर परिग्रह-परिमाणव्रत के पाँच अतिचार बतलाए हैं। तीन गुणव्रत जिन व्रतों से अणुव्रतों का विकास होता है, उन्हें गुणव्रत कहते हैं। गुणव्रत तीन हैं- दिग्वत, भोगोपभोग परिमाण व्रत, अनर्थदण्ड विरमणव्रत। (1) दिग्व्रत (दिशाव्रत) __ जीवनपर्यन्त के लिए दसों दिशाओं में आने-जाने की मर्यादा बना लेना दिग्व्रत है। लोभ के शमन के लिए दिग्व्रत लिया जाता है। तत्त्वार्थ सूत्र में इसके पाँच अतिचार बतलाए गए हैं- ऊर्ध्व-व्यतिक्रम, अधोव्यतिक्रम, तिर्यग्-व्यतिक्रम, क्षेत्र वृद्धि, विस्मरण।36 (2) भोगोपभोग परिमाण व्रत भोजन-पान आदि एक ही बार उपयोग में आने वाली वस्तु को भोग 283
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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