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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन है ।' सप्तभंगीतरंगिनी में कहा गया है- "अनेकेअन्ता धर्माः सामान्यविशेषपर्याया गुणायस्येति सिद्धोऽनेकान्त" (30/2) अर्थात् जिसके सामान्य विशेष पर्याय व गुण रूप के अनेक अन्त या धर्म हैं, वह अनेकान्त रूप सिद्ध होता है । एक द्रव्य में अनेक धर्म हों, यह कोई महत्वपूर्ण स्वीकृति नहीं है, किन्तु एक ही वस्तु में, एक ही काल में अनन्त विरोधी धर्म एक साथ रहते हैं, यह अनेकान्त दर्शन की महत्वपूर्ण स्वीकृति है । जैन दर्शन की चिन्तन शैली का नाम अनेकान्त व प्रतिपादन शैली का नाम स्याद्वाद है । अनेकान्त ज्ञानात्मक और विचारात्मक स्थिति है, स्याद्वाद वचनात्मक स्थिति है। एक ही वस्तु को, शब्द को कितनी दृष्टियों से प्रतिपादित किया जा सकता है, किन अपेक्षाओं से स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है, स्याद्वाद के माध्यम से यह स्पष्ट हो जाता है । ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित अनेक संवाद अनेकान्त की आत्मा को उजागर करते हैं। शुक परिव्राजक और थावच्चापुत्र का संवाद इस संदर्भ में दृष्टव्य है'सरिसवया ते भंते! भक्खेया अभक्खेया ?" 'सुया ! सरिसवया भक्खेया वि अभक्खेया वि । " इस अनेकान्तिक वार्तालाप को स्याद्वाद शैली में आगे बढ़ाया गया है 'सरिसवया' के दो प्रकार हैं- (1) मित्र, ( 2 ) धान्य (सरसों) । मित्र सरिसवया के तीन प्रकार हैं- (1) साथ जन्मे हुए, (2) साथ बढ़े हुए, (3) साथ-साथ खेले हुए। ये तीन प्रकार के मित्र सरिसवया श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं । धान्य सरिसवया के दो प्रकार हैं- (1) शस्त्र परिणत, और (2) अशस्त्र परिणत । शस्त्र परिणत भी दो प्रकार के हैं- (1) प्रासुक, (2) अप्रासुक । अप्रासुक अभक्ष्य है। प्रासुक दो प्रकार के हैं- (1) याचित, (2) अयाचित । अयाचित अभक्ष्य हैं। याचित दो प्रकार के हैं- एषणीय और अनेषणीय । अनेषणीय अभक्ष्य हैं । एषणीय के दो प्रकार हैं- (1) लब्ध, (2) अलब्ध। अलब्ध अभक्ष्य हैं। जो लब्ध हैं, वे निर्ग्रन्थों के लिए भक्ष्य हैं। इस अभिप्राय से सरिसवया भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं । 1 इसी प्रकार के विकल्पों की शृंखला 'कुलत्था' के संदर्भ में भी कही गई है, जिसे अग्रांकित रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं 260
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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