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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन मूर्तिकला'42, काष्ठ शिल्प'43, चर्म शिल्प144 आदि कलाओं का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत कृति के 'अर्थव्यवस्था' नामक अध्याय में किया गया है।
कलाओं का जीवन पर प्रभाव
किसी भी कार्य को सर्वोत्तम ढंग से करने की प्रविधि का नाम कला है। उस युग में विविध कलाओं का गहराई से अध्ययन कराया जाता था। पुरुषों के लिए बहत्तर कलाएँ और स्त्रियों के लिए चौंसठ कलाएँ थी। केवल ग्रंथों से ही नहीं, उन्हें अर्थ और प्रयोगात्मक रूप से भी सिखाया जाता था। इस प्रकार तत्कालीन जीवन का हर क्षेत्र कला पर अवलम्बित या कला द्वारा संचालित था।
वास्तुकला व स्थापत्य कला आदि ने जहाँ एक ओर नगर विन्यास को प्रभावी बनाया वहीं दूसरी ओर इनसे लोगों को रोजगार भी मिलता था। चित्र, संगीत व नृत्य आदि कलाओं द्वारा लोगों का मनोरंजन भी होता था तथा वे इनके द्वारा अपना आन्तरिक और बाह्य सौन्दर्य निखारते थे, जिससे सामाजिक जीवन में सरसता बनी रहती थी।
खेत जोतने व धान उपजाने की कलाओं ने कृषि कार्य को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया। विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाने की कलाएँ उद्योग धन्धों को पल्लवित करने में योगभूत बनीं। तलवार, व्यूह रचना, धनुष-बाण व विभिन्न प्रकार के युद्ध आदि से सम्बन्धित कलाओं ने युद्ध के परिणाम को प्रभावित किया।
तत्कालीन समय में प्रचलित कलाओं से अनुप्रमाणित व्यक्ति ने अपने चरम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण कला- मरने की कला (संलेखना-समाधिपूर्वक मरण) विकसित की, जिसका दिग्दर्शन अन्य किसी दर्शन के ग्रंथ में दुर्लभ है।
__इस प्रकार कहा जा सकता है कि तत्कालीन संस्कृति की दिशा और दशा की निर्धारक 'बहत्तर' और 'चौंसठ' कलाएँ ही थीं। इन्हीं की धुरी पर तत्कालीन सांस्कृतिक जीवन का चक्र चलायमान था।
___ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित कलाएँ तत्कालीन सांस्कृतिक समृद्धि की परिचायक हैं। ये कलाएँ व्यक्ति के जीवन को एक नया मोड़ देती थी, इनके अध्ययन से जहाँ एक ओर जीवन में परिपूर्णता आती थी वहीं दूसरी ओर संस्कृति को विकास का एक नया आयाम उपलब्ध होता था।
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