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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन है। जब हम आत्मा के सौन्दर्य का बोध करते हैं, तो विश्वात्मा के परमानन्द का अनुभव, हमारी कला को कल्याण और प्रेम के मार्ग से असीम की ओर ले जाता 1715 ● एडीसन " प्राकृतिक जगत् के उस शारीरिक और नैतिक सौन्दर्य का, जिससे हमें वस्तु-जगत् में आनन्द प्राप्त होता है, हम बारम्बार साक्षात्कार और अनुभव करना चाहते हैं; अतएव हम उसे दोहराते रहना चाहते हैं- वैसे ही ज्यों का त्यों नहीं, बल्कि जिस रूप में हमारी कल्पना हमें उसका मानस-साक्षात्कार कराती है। इस क्रिया से मनुष्य के समक्ष एक मौलिक और सार्थक कृति उत्पन्न हो जाती है, जिसे कलात्मक कृति कहते हैं। 16 ● प्रसाद 44 'नव-नव स्वरूप प्रथोल्लेखशालिनी संवित् वस्तुओं में या प्रमाता है स्व को, आत्मा को परिमिति रूप में प्रकट करती है, इसी क्रम का नाम कला है। 17 ● भोजराज "व्यंजयति कर्त्तृशक्तिं कलेति तेनेह कथिता सा अर्थात् ईश्वर की कर्तृत्व शक्ति का संकुचित रूप जो हमको बोध के लिए मिलता है, वही कला है। 18 "Art is a faithful mirror of the life and civilization of a period."'9- Nehru ● जैनेन्द्र 44 'कला शब्द मनुष्य ने बनाया इसलिए कि उसके द्वारा वह अपने भीतर अनुभूत सत्य को प्रकट करना चाहता था । 1120 ● आचार्य तुलसी " जिस कर्म से जीवन का अन्तर संपृक्त होता है, अध्यात्म शक्ति का विकास होता है, वह कर्म ही कला है। कला न तो पढ़ने की चीज है और न अभ्यास की वस्तु है । वह तो जीवनगत तत्त्व है, इसलिए वह जीवन के उन्मेषनिमेषों से संयुक्त है ।' 1121 → आचार्य रामचन्द्र शुक्ल "जिस प्रकार बाह्य प्रकृति के बीच वन, पर्वत, नदी, निर्झर की रूपविभूति से हम सौन्दर्य मग्न होते हैं, उसी प्रकार अंतः प्रकृति की दया, दाक्षिण्य, 240
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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