SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा को गुरु कहते हैं । (प्रज्ञापना महलवृत्ति-7, पृ. 3)। __ अभयदेवसूरि ने कहा है- जो सूत्र और अर्थ दोनों के ज्ञाता हों, उत्कृष्ट कोटि के लक्षणों से युक्त हों, संघ के लिए मेढ़ि के समान हों, जो अपने गणगच्छ अथवा संघ को समस्त प्रकार के संतापों से पूर्णतः विमुक्त रखने में सक्षम हों तथा जो अपने शिष्यों को आगमों की गूढार्थ सहित वाचना देते हों, उन्हें आचार्य कहते हैं।139 मनुस्मृति में कहा गया है कि जो विप्र निषेक (गर्भाधान) आदि संस्कारों को यथा विधि करता है और अन्न से पोषण करता है वह गुरु कहलाता है। 140 इस परिभाषा के अनुसार पिता प्रथम गुरु है, तत्पश्चात् पुरोहित, शिक्षक आदि। गुरु के गुण जीवन-निर्माण में गुरु की भूमिका निर्विकल्प है। ऐसी स्थिति में उस महान् विभूति का योग्य होना भी नितान्त आवश्यक है। प्रश्न उठता है कि शिक्षक की योग्यता क्या होनी चाहिए? कौन व्यक्ति गुरु बनने का अधिकारी है ? क्या सभी लोग यथेच्छा आचार्य या गुरु बन सकते हैं? ज्ञाताधर्मकथांग में उपर्युक्त सभी प्रश्नों को समाधायित करते हुए कहा है कि गुरु कुलसम्पन्न, विनयसम्पन्न, ज्ञानवान, ओजस्वी, तेजस्वी, वचस्वी, यशस्वी, तपस्वी, संयमी, आर्जव प्रधान, मार्दव प्रधान, लाघव प्रधान, निर्लोभी, लौकिक व लोकोत्तर आगमों में निष्णात, चारित्र प्रधान, उदार, करण प्रधान, चरण प्रधान, बल सम्पन्न, सत्य प्रधान, शौच प्रधान, मंत्र प्रधान, नय प्रधान व नियम प्रधान होना चाहिये।41 ____ आवश्यक नियुक्ति में कहा गया है कि अध्यापकों में भी विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए पूर्ण योग्यता होनी चाहिये। जो प्रश्न विद्यार्थियों द्वारा पूछे जाएं उनका उत्तर अपना बड़प्पन प्रदर्शित किए बिना देना चाहिए तथा कभी असम्बद्ध उत्तर नहीं देना चाहिए।42 व्यवहारसूत्र में आचार्य पद को प्राप्त करने की योग्यताओं के विषय में कहा गया है कि कम से कम पाँच वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला, श्रमणाचार में कुशल, प्रवचन में प्रवीण, प्रज्ञा बुद्धि में निष्णात, आहारादि के उपग्रह में कुशल, अखण्डाचारी, सबल दोषों से रहित, भिन्नता रहित आचार का पालन करने वाले, नि:कषाय चरित्र वाले अनेक सूत्रों और आगमों आदि में पारंगत श्रमण आचार्य अथवा उपाध्याय पद को प्राप्त करने के योग्य हैं।143 मूलाचार में आचार्य के गुणों पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि आचार्य को संग्रह-अनुग्रह में कुशल, 223
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy