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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा जैन मुनि कल्याणसागर के मतानुसार 44 'शिक्षा का वास्तविक लक्ष्य अज्ञान को दूर करना है। मुनष्य में जो शरीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियाँ मौजूद हैं और जो दबी पड़ी हैं, उन्हें प्रकाश में लाना ही शिक्षा का यथार्थ उद्देश्य है, परन्तु इस उद्देश्य की पूर्ति तब होती है जब शिक्षा के फलस्वरूप जीवन में संस्कार उत्पन्न होते हैं । केवल शान्ति के विकास में शिक्षा की सफलता नहीं है अपितु शक्तियाँ विकसित होकर जनजीवन के सुन्दर निर्माण में प्रयुक्त होती हैं तभी शिक्षा सफल होती है । ' 113 उपर्युक्त परिभाषा शिक्षा की एक समग्र परिभाषा कही जा सकती है। इसमें शिक्षा के क्षेत्र का सम्पूर्ण विवेचन किया गया है और शिक्षा की सफलता के लिए जनजीवन से जुड़ाव को अपरिहार्य बतलाया गया है, जो अक्षरशः सत्य है। स्वामी विवेकानन्द का मन्तव्य "हमें उस शिक्षा की आवश्यकता है, जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण होता है, मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है, बुद्धि का विकास होता है और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है । ' "114 प्रस्तुत परिभाषा वर्तमान युग में भी प्रासंगिक है क्योंकि इसमें स्वावलम्बन की बात कही गई है । यदि स्वावलम्बी बनाने वाली शिक्षा हो तो बेरोजगारी की समस्या से निजात पाई जा सकती है । डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार " शिक्षा का उद्देश्य न तो राष्ट्रीय कुशलता है न सांसारिक एकता, बल्कि व्यक्ति को यह अनुभूत करना है कि बुद्धि से अधिक गहराई का कोई तत्त्व है, जिसे चाहो तो आत्मा कह सकते हैं। 15 यह परिभाषा शिक्षा के आध्यात्मिक स्वरूप का बोध कराने वाली है। इस परिभाषा में शिक्षा के अन्य कार्यों की उपेक्षा की गई है, जिसे उचित नहीं कहा जा सकता है। हुमायूं कबीर के शब्दों में "यदि व्यक्ति को समाज का रचनात्मक सदस्य बनना है, तो उसे केवल अपना ही विकास नहीं करना चाहिए, वरन् समाज के विकास में भी योगदान करना चाहिए ।' 1116 209
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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