________________
ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन वस्तुओं का व्यापार यातायात के साधनों के अभाव में संभव नहीं है।
प्राचीन जैन वाङ्गमय में उपलब्ध संदर्भो से स्पष्ट है कि सम्पूर्ण भारत जल और स्थल मार्गों से जुड़ा हुआ था। 25आर्य देश [मगध, अंग, वंग, कलिंग, काशी, कौशल, कुरु, कुशावर्त (सुल्तानपुर), पंचाल, जांगलदेश, सौराष्ट्र, विदेह, वत्स, संडिब्बा (संडील), मलया (हजारीबाग प्रान्त), वच्छ (मत्स्य), अच्छा (बिदिलपुर), दशार्ण, चेदि, सिन्धु, सौवीर, शूरसेन, बंग, परिवर्त, कुणाल, लाढ और कैकयार्द्ध] जल और स्थल मार्गों द्वारा परस्पर जुड़े हुए थे।।56
ज्ञाताधर्मकथांग में मुख्यतः स्थल और जल मार्गों का उल्लेख हुआ है लेकिन एक-दो स्थानों पर वायुमार्गों का भी उल्लेख मिलता है। परिवहन के विभिन्न मार्गों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है1. स्थलमार्ग
प्राचीनकालीन नगर और गाँव दोनों ही न्यूनाधिक रूप से परिवहन सुविधाओं से युक्त थे। नगरों में व्यवस्थित और प्रशस्त मार्ग निर्मित थे। ज्ञाताधर्मकथांग में इन मार्गों को दो रूपों में प्रस्तुत किया गया है- (i) 'पथ' और (ii) 'महापथ'157 भगवती सूत्र में साधारण और कम यातायात वाले मार्ग को 'पथ' और अधिक यातायात वाले मार्ग को 'महापथ' कहा गया है ।158 ज्ञाताधर्मकथांग में इन मार्गों का श्रृंगाटक (सिंघाड़े के आकार के), त्रिक (तिराहा), चतुष्क (चौराहा) और प्रवह (जहाँ छः मार्ग मिलते हों) के रूप में भी नामोल्लेख मिलता है।59
ग्रामों को शहरों से जोड़ने वाले सम्पर्क मार्गों पर रथ, हाथी, घोड़े, गाड़ी, पालकी आदि साधनों से यात्रा की जाती थी।160
__ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि नगरों और गाँवों के मार्गों की समुचित देखभाल की जाती थी। धूल-मिट्टी को दबाने के लिए पानी का छिड़काव किया जाता था। उत्सवों और विशेष अवसरों पर सड़कों को तोरणों और पताकाओं से सजाया जाता था और सुगंधित द्रव्य डालकर उन्हें सुवासित किया जाता था। मेघकुमार के जन्मोत्सव के अवसर पर राजा श्रेणिक ने कौटुम्बिक पुरुषों को राजमार्गों को सिंचित कर ध्वजाओं और पताकाओं से सजाने तथा चंदन, लोबान व धूप आदि से सुवासित करने का आदेश दिया।61 स्थल-वाहन
स्थल मार्गों के लिए रथ, शकट, बैलगाड़ी, हाथी, घोड़ा आदि वाहन होते
179