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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
___ 'सार्थ' का प्रस्थान करना व्यापारिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण घटना होती थी। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व अनेक प्रकार की तैयारियां की जाती थी। यात्रा के लिए खाद्य सामग्री साथ ली जाती थी, सेवकों को तैयार किया जाता था। शुभ नक्षत्र, तिथि और मुहूर्त देखकर सार्थ-प्रस्थान की घोषणा की जाती थी। यात्रा से पूर्व सगे-सम्बन्धियों और श्रेष्ठजनों को दावत दी जाती थी।147 कुछ धार्मिक विचारों वाले सार्थवाह अपने सहयात्रियों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ देते थे।148
पुरुषों के समान स्त्रियाँ भी कुशल व्यापारी होती थी। ज्ञाताधर्मकथांग में द्वारका नगरी के थावच्चा नाम गाथापत्नी (गृहस्थ महिला) और देवदत्ता गणिका का उल्लेख आता है, जो व्यापार कार्य में निपुण थी।149
सार्थवाह को यात्रा प्रारंभ करने पूर्व राजा से अनुमतिपत्र प्राप्त करना होता था। जिस देश से व्यापार करना होता था उस देश के राजा से भी व्यापार की अनुमति लेकर शुल्क देना पड़ता था। कभी-कभी राजा प्रसन्न होकर व्यापारी को शुल्क-मुक्ति भी प्रदान कर देते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि अर्हनक आदि सांयत्रिक वणिकों ने अपना माल मिथिला में बेचा और वहाँ से दूसरा माल खरीदा और उसे बेचने के लिए चम्पानगरी की ओर प्रस्थान किया।52 इससे स्पष्ट है कि व्यापारी एकाधिक देशों में वस्तुओं का क्रय-विक्रय कर अधिकाधिक लाभार्जन का प्रयास करते थे। इसके आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अस्तित्व को स्वीकारा जा सकता है। आयात-निर्यात व्यापार
आगमकाल में आयात-निर्यात व्यापार की विद्यमानता के संकेत ज्ञाताधर्मकथांग में यत्र-तत्र मिलते हैं। हस्तीशीर्ष नगरी के राजा कनकहेतु ने कालिकद्वीप से आकीर्ण नामक उत्तम जाति के अश्वों का आयात किया।53 श्रेणिक राजा के अन्तःपुर में विदेशी दासियाँ थी।154 राज्य द्वारा आयोजित वस्तुओं पर शुल्क लगाया जाता था लेकिन निर्यात पर किसी प्रकार के शुल्क का उल्लेख नहीं मिलता। इससे स्पष्ट है कि राज्य निर्यात संवर्द्धन को बढ़ावा देकर व्यापार संतुलन की नीति का अनुकरण करते थे। परिवहन
विनिमय में परिवहन का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान है। राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि यातायात के साधनों पर निर्भर रही है। कृषि और उद्योग से उत्पादित
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