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ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन
भाण्ड - बर्तन उद्योग
तत्कालीन समय में मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग बहुतायत से होता था । ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न स्थानों पर इसके स्पष्ट संकेत मिलते हैं। मेघकुमार के जन्मोत्सव के अवसर पर राजा श्रेणिक ने कुंभकार आदि अट्ठारह श्रेणियों को आमंत्रित किया।'' सुबुद्धि अमात्य ने जल को विशुद्ध करने के लिए कुंभकार की दुकान से घड़े मंगवाए | 106 मेघकुमार को राज्याभिषेक से पूर्व 864 कलशों में जल भरकर स्नान करवाया गया, जिनमें 108 कलश मिट्टी के थे। 17 मल्ली की अभिषेक सामग्री में 1008 मिट्टी के कलशों का उल्लेख मिलता है। 108 कुम्हार का कर्म स्थान कुर्मारशाला था। भगवान महावीर सकडाल की कुम्हारशाला में रूके थे। 109 काष्ठ उद्योग
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ज्ञाताधर्मकथांग में काष्ठकर्म के लिए 'कट्ठकम्म' 'शब्द का उल्लेख मिलता है, इससे काष्ठ उद्योग के प्रचलन का अनुमान लगाया जा सकता है। भद्रा ने अपने पति धन्यसार्थवाह के लिए भोजन 'पिडयं' अर्थात् बांस की छाबड़ी में रखकर कारावास में भिजवाया । "
चित्र - उद्योग
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चित्रकार भी एक प्रकार के शिल्पी थे । वे अपनी चित्रकारी का प्रदर्शन भवनों, वस्त्रों, रथों और बर्तनों आदि पर किया करते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में चित्रकला के अनेक उद्धरण प्राप्त होते हैं । धारिणी देव के ' शयनागार' की छत लताओं, पुष्पावलियों तथा उत्तम चित्रों से अलंकृत थी । 12 श्रेणिक की सभा में लगी यवनिका (पर्दा) में भी अनेक प्रकार की चित्रकारी की हुई थी । 113 मल्लदिन्नकुमार ने अपने प्रमदवन में एक चित्रसभा बनवाई और उसमें चित्रकार श्रेणी को बुलवाकर चित्रांकन का आदेश दिया। चित्रकार तूलिका और रंग लाकर चित्र रचना में प्रवृत्त हो गए, उन्होंने भित्तियों का विभाजन किया, भूमि को लेपों से सजाया और नाना प्रकार के चित्र बनाने लगे। 14 इन चित्रकारों की श्रेणी में एक चित्रकार इतना प्रवीण था कि किसी व्यक्ति के एक अंगमात्र को देखकर ही वह वैसी की वैसी प्रतिकृति बना सकता था । 15 श्रेष्ठी नन्दमणियार ने भी एक चित्रसभा बनवाई जिसे विभिन्न प्रकार के चित्रों से सजाया गया। वहाँ सैंकड़ों चित्रकार वेतनभोगी के रूप में कार्यरत थे । 116
चर्म उद्योग
आगमकाल में चर्म तथा उससे निर्मित वस्तुओं का प्रचलन था ।
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