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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन मसग (चर्म से मढ़े वस्त्र) लेकर गए। काली आर्या के देव के रूप में उत्पन्न होने के सदंर्भ में देवदूष्य वस्त्र का उल्लेख मिलता है। बहत्तर कलाओं के संदर्भ में नवीन वस्त्र बनाने, रंगने, सीने एवं पहनने का उल्लेख मिलता है ।83 धातु-उद्योग कालिक द्वीप में सोना, चाँदी, रत्न और हीरों की खानें थी, इससे पता चलता है कि खनन द्वारा धातु निकाले जाते थे और धातु उद्योग विकसित अवस्था में था। निशीथ चूर्णि के अनुसार खान खोदने वाले श्रमिक "क्षिति खनक" कहे जाते थे। कृषि के उपकरण", हल-कुदाल, फरसा, द्रांतियाँ, हंसिया, युद्ध के उपकरण?- भाला, बी, तलवार आदि एवं गृहोपयोगी वस्तुएँसुई, कैंची, नखछेदनी आदि का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है। ज्ञाताधर्मकथांग में धातु निर्माण को एक कला के रूप में स्वीकार किया गया है। पीतल और कांसे के बर्तनों के उल्लेख से टीन और जस्ते के प्रयोग का संकेत मिलता है। ज्ञाताधर्मकथांग में सोने-चाँदी और मणियों के विविध कलापूर्ण आभूषणों तथा विभिन्न आकार-प्रकार के मणिरत्नों के एकाधिक बार आए उल्लेख इस बात के प्रमाण हैं कि स्वर्णकारों का व्यवसाय उत्कर्ष पर था। राजा श्रेणिक और दीक्षा से पूर्व मेघकुमार ने हार, अर्थहार, एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, त्रुटित, केयूर, बाजूबंद, अंगद, मुद्रिकाएँ, कटिसूत्र, कुंडल, चूडामणि, मुकुट आदि आभूषणों को धारण किया। महिलाओं के आभूषणों में नूपुर (पायल) का भी नाम आता है। स्वर्णकारों ने उन्नीसवें तीर्थंकर 'मल्ली' की अत्यन्त जीवन्त स्वर्ण-प्रतिमा निर्मित की थी। इसी प्रकार एक बार मल्लीकुमारी का एक दिव्य कुंडल टूट गया। उसके पिता कुम्भ ने स्वर्णकारों को जोड़ने का आदेश दिया। राजाओं ने आसन, यान, पीठ, भवन, शय्या आदि सोने-चाँदी के बनाए जाते थे और उन्हें मणिजटित किया जाता था। मेघकुमार का महल” तथा धारिणी देवी की शय्या०० सोने-चाँदी से निर्मित थे और उनमें मणियाँ जड़ी हुई थी। अश्वों और हाथियों को भी सोने-चांदी के आभूषणों से सजाया जाता था। सार्थवाहपुत्रों द्वारा बैलों को स्वर्णाभूषणों से सज्जित करवाने का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है।102 ___ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न प्रकार के रत्नों का उल्लेख मिलता है।103 स्फटिक के उल्लेख से प्रतीत होता है कि स्फटिक उद्योग भी प्रचलित था।104 174
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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