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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन गणधर के समान ही अन्य प्रत्येक-बुद्धों द्वारा निरूपित आगम भी प्रमाण रूप होते हैं। आप्तवचन आगम माना जाता है, उपचार से आप्तवचन से उत्पन्न अर्थज्ञान को भी आगम कहा गया है। पूर्वापर विरूद्धादि दोषों के समूह से रहित और सम्पूर्ण पदार्थों के द्योतक __ आप्त वचन को आगम कहते हैं। . आप्त के वाक्य के अनुरूप आगम के ज्ञान को आगम कहते हैं।20 जो तत्त्व आचार परम्परा से वासित होकर आता है, वह आगम कहा जाता है। जिससे सही शिक्षा प्राप्त होती है, विशेषज्ञान प्राप्त होता है, वह शास्त्र आगम या श्रुतज्ञान कहलाता है। कर्मों के क्षय हो जाने से जिनका ज्ञान सर्वथा निर्मल एवं शुद्ध हो गया हो, ऐसे आप्त पुरुषों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का संकलन आगम है। जो तीर्थ की स्थापना करते हैं, वे तीर्थंकर हैं और तीर्थंकरों की वाणी अर्थात् उनके मुख से उद्भाषित वाणी आगम है। जिससे पदार्थों का यथार्थ ज्ञान हो, वह आगम है। पंचास्तिकाय तात्पर्य वृत्ति में आगम को परिभाषित करते हुए लिखा है कि वीतराग सर्वज्ञदेव के द्वारा कथित षडद्रव्य एवं सप्ततत्त्वादि का सम्यक् श्रद्धान एवं ज्ञान तथा व्रतादि के अनुष्ठान रूप चारित्र, इस प्रकार जिसमें भेदरत्नत्रय का स्वरूप प्रतिपादित किया गया है, वह आगम शास्त्र है। आगम के रचनाकार आगमों की रचना किसने की? इस विषय पर सभी आचार्यों में मतैक्य नहीं है। आगम एवं उनके व्याख्या साहित्य का अध्ययन करने पर इस संबंध में हमें दो विचारधाराएँ दृष्टिगोचर होती हैं(1) प्राचीन अवधारणा- द्वादशांगी के कर्ता गणधर हैं और उपांग आदि के कर्ता स्थविर हैं। अर्वाचीन अवधारणा- अंग और अंगबाह्य समस्त आगमों के निर्माता गणधर हैं। उपर्युक्त दोनों विचाराधाराओं में से प्रथम विचाराधारा को ही सम्यक् माना (2) 16
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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