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ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन और सुद्ध नाम के चार वर्णों का उल्लेख मिलता है । ज्ञाताधर्मकथांग के संदर्भ में इनका दिग्दर्शन इस प्रकार है
ब्राह्मण
जैन आगमों में ब्राह्मण के लिए 'माहण' शब्द का प्रयोग हुआ है । ज्ञाताधर्मकथांग में एकाधिक बार 'माहण 497 शब्द प्रयुक्त हुआ है ।
'माहण' शब्द का अर्थ माहन, ब्राह्मण, हिंसा से निवृत्त, अहिंसक - मुनि, साधु, ऋषि, श्रावक, जैन उपासक से है । 498
ब्राह्मण का कर्म
ब्राह्मण वेद तथा अन्य ब्राह्मणशास्त्रों (शिक्षा, व्याकरण, निरूक्त, छंद, ज्योतिष, मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र आदि) में प्रवीण थे 1499 राजा श्रेणिक ने अष्टांग महानिमित्त ( ज्योतिष के सूत्र और अर्थ के पाठक) तथा कुशल स्वप्न पाठकों को धारिणी के स्वप्नफल बताने के लिए आमंत्रित किया 500 और उन्हें प्रीतिदान देकर ससम्मान विदा किया 501 यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व भी ब्राह्मणों से तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त पूछा जाता था 1502
क्षत्रिय
जैन आगमों में क्षत्रिय के लिए 'खत्तिए' शब्द का प्रयोग हुआ है। 503 क्षत्रिय का कर्म
प्राणियों की रक्षा करना, शस्त्र द्वारा आजीविका करना, सज्जनों का उपकार करना, दीनों का उपकार करना और युद्ध से विमुख से नहीं होना - ये क्षत्रियों के कर्म हैं।504 ज्ञाताधर्मकथांग में कच्छुल्ल नारद द्वारा द्रौपदी का अपहरण करके पद्मनाथ राजा के पास पहुँचा देने पर द्रौपदी की रक्षा कर पुनः लाने के लिए कृष्ण महाराज ने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए पद्मनाथ राजा से युद्ध किया । Sos वैश्य
ज्ञाताधर्मकथांग में वैश्यों के लिए सार्थवाह, श्रेष्ठी और गाथापति शब्दों का प्रयोग बहुलता से हुआ है 1506
वैश्यों का कर्म
ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार सार्थवाह व्यापारार्थ एक नगर से दूसरे नगर तक तो जाते ही थे, लेकिन कई बार अर्थात् सामुद्रिक यात्रा भी करते थे ।507 धन्य सार्थवाह की पुत्रवधू रोहिणी द्वारा चावलों की खेती करवाने का उल्लेख भी
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