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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
बहुपत्नीवाद- समाज में एक पुरुष द्वारा पत्नी रूप में अनेक स्त्रियों को रखने की कुरीति प्रचलित थी। राजा श्रेणिक'51, मेघकुमार'52, थावच्चापुत्र, श्रीकृष्ण454 व पद्मनाथ राजा'55 आदि प्रत्येक के एक से अधिक पत्नियाँ
थीं।
वेश्यावृत्ति- उस समय समाज में वेश्यावृत्ति प्रचलित थी। वेश्या को गणिका कहा जाता था। देवदत्ता गणिका चौंसठ कलाओं में निष्णात थी456, ऐसा उल्लेख मिलता है। दासप्रथा'57- उस समय दासप्रथा का प्रचलन बहुत ज्यादा था। राजाओं के राज में अनेक प्रकार के दास-दासी रहते थे और इनके अलग-अलग कार्य होते थे।458 राजा को शुभ सूचना देने वाले दासों को दासत्व से मुक्त कर दिया जाता था।59 मेघकुमार के जन्म की सूचना लेकर जब दासियाँ श्रेणिक के पास पहुँची तो राजा ने उन्हें अपना मुकुट छोड़कर शेष सभी अलंकार भेंट किए और दासत्व से मुक्त कर दिया।460 दहेज प्रथा- राजकन्याओं व श्रेष्ठी कन्याओं के विवाह में घोड़े, हाथी व धन आदि दहेज में दिए जाते थे। 61 द्रुपद राजा ने द्रौपदी को बहुत-सा
दहेज दिया जो सात पीढ़ियों तक खत्म नहीं होने वाला था।62 __ तंत्र-मंत्र-ढोंग63 तथा आडम्बर-64- समाज पर तंत्र-मंत्र तथा ढोंग
आडम्बर का प्रभाव था 165 लोग स्वप्न और उसके फलों पर विश्वास करते थे।466 शकुन-अपशकुन की सत्यता पर विश्वास के प्रसंग भी प्राप्त होते हैं 167 भद्रा सार्थवाही को पुत्र प्राप्ति के लिए अनेक देवी-देवताओं के पास मनौती मांगते देखा जाता है168 और उसके लिए वह अनेक प्रकार का आडम्बर करती है।69 अपहरण470- आलोच्य ग्रन्थ में अपहरण के भी प्रसंग मिलते हैं। अपहृता छोटे बच्चों तथा कन्याओं का अपहरण कर दूर भगा ले जाते थे। उनके गहने/अलंकार छीन लेते थे और उन्हें प्राणरहित तक भी कर देते थे। चोरी-लूट- ज्ञाताधर्मकथांग में चोर, डाकू व तस्कर आदि का उल्लेख मिलता है। 71 पाँच-पाँच सौ चोर एक साथ रहते थे। चोरों के रहने के स्थान का चोरपल्ली कहा है।72 विजय चोर सार्थवाह पुत्र देवदत्त के सभी गहने लूट लेता है73 और चिल्लात चोर आदि धन्य सार्थवाह का घर लूट
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